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________________ उत्तराध्ययन सुत्र NAANWAMAN. वासना ने उन पर अपना अधिकार जमाया। विपयों की ग्रासक्ति से उन्हें स्त्रीसंग करने की उत्कट इच्छा हुई। स्त्री संग की तीव्रतर लालसा ने उन्हें अंधा बना दिया और उन्हें पात्र कुपात्र तक का भान न रहा । इस कृत्रिम स्नेह के गर्भ में अन्तर्हित विषय की विषमयी वासना को पुष्ट करने वाली अपने जैसी कामुक एक स्त्री भी उन्हें मिल गई और वे दोनों, संसार विलासी जीवों को परम सुख लगने वाले ऐसे काम भोगों को भोगने लगे। वारंवार भोगने पर भी कपिल को जिस रस की प्यास थी वह तो उन्हें नहीं मिला और वे अज्ञानता के वशीभूत होकर अधःपतन के गहरे गड्ढे में नीचे नीचे गिरते चले गये। एक दिन कपिल लक्ष्मी तथा साधनों से हीन, अत्यन्त दीन होकर बैठे थे। उनकी स्त्री ने उन्हें राज दरवार में जाने क्री प्रेरणा की। उस राजा का यह नियम था कि जो कोई प्रातःकाल उसके दरबार में प्राता उसको वह सुवर्गामुद्राओं का दान करता। उसकी ऐसी कीर्ति सुनकर राज दरबार में जाने के लिये कपिल रात्रि के अन्तिम पहर में निकले किन्तु दुर्भाग्य उनके पीछे २ लगा था। ज्याही वे नगर में घुसे कि सिपाहियों ने उन्हें चोर समझ कर गिरफ्तार कर लिया । अन्त में उनकी सच्ची वात जानकर राजा ते उन्हें दया करके छोड़ दिया और उन पर प्रसन्न होकर यथेच्छ वरदान मांगने को कहा। कपिल विचार में पड़ गये। 'यह मांगू वह मांगू' उनकी लालसा इतने से भी तृप्त न हुई। अन्त में, तमाम राज्य मांगने का विचार किया और राज्य मांगने वाले ही थे कि यकायक अंतरात्मा का नाद सुनाई पड़ा है कपिल ! राज्य पाकर भी तृप्ति कहां है?
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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