SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 990
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5GHOR अध्याय नामका प्रमाण कहा जाता है। इसीको अर्धकंस भी कहते हैं। तीन पलोंका नाम एक कुडव (पोसेरा) है है है। चार पौसेराओंका नाम एक प्रस्थ (सेर) है चार प्रस्थोंको एक आढक कहते हैं। चार आढकोंको है - एक द्रोण कहते हैं। सोलह द्रोणोंका नाम एक खारी है। वीस खारियोंका नाम एक वाह है । इत्यादि यह सब नागरिक मान हैं । मणि और जातिमान् घोडा आदि द्रव्यकी दीप्ति और ऊंचाई आदि गुण । विशेषोंसे जिसके द्वारा वस्तुका मूल्य समझा जाय वह तत्प्रमाण नामका मान है। जिसतरह मणिरत्नकी कांति ऊपरकी ओर जितने क्षेत्र में व्याप्त हो उतना प्रमाण सोनेका समूह अमुक पदार्थका मूल्य है । अमुक घोडेकी जितनी ऊंचाई है उतनी ऊंचाईके बराबर सोनेका समूह अमुक वस्तुका मूल्य है. है। रत्नोंके स्वामीको जितने रत्नोंसे संतोष हो सके उतने रत्नोंकी बराबर रत्नोंका समूह अमुक वस्तु* का मूल्य है। इसीप्रकार अन्य द्रव्योंका भी प्रमाण समझ लेना चाहिये। लोकोत्तरं चतुर्धा द्रव्यक्षेत्रकालभावभेदात् ॥ ४॥ द्रव्य क्षेत्र काल और भावके भेदसे लोकोचर मान चार प्रकारका है। द्रव्य नामक प्रमाणके जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट ये तीन भेद हैं। उनमें एक परमाणु प्रमाण जघन्य द्रव्यप्रमाण है और महास्कंध खरूप उत्कृष्ट द्रव्यप्रमाण है। क्षेत्रप्रमाणके भी जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट ये तीन भेद हैं। उनमें एक आकाशप्रदेशजघन्य क्षेत्रप्रमाण है। दो तीन चार आदि आकाशप्रदेश मध्यम क्षेत्रप्रमाण है । और सर्वलोकप्रमाण आकाश उत्कृष्ट क्षेत्रप्रमाण है। कालप्रमाण भी जघन्य मध्यम और उत्कृष्टके भेदसे तीन प्रकारका है। उनमें एक समयस्वरूप जघन्यकाल मान है । दो तीन चार पांच छह सात मादि समय स्वरूप यध्यमकाल मान है और अनंतकालस्वरूप उत्कृष्टकालमान है। भावप्रमाण उपयोग कहा जाता ASREASOOTRASTRIFIERRESTRISARASHTRA १६
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy