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________________ अण्पाव | है। वह साकार और अनाकारके भेदसे दो प्रकारका है । उनमें जघन्य उपयोग लब्धिअपर्याप्तकसूक्ष्म 18|| निगोदियाके लब्ध्यक्षरका अविभाग प्रतिच्छेदप्रमाण होता है। मध्यम उपयोग अन्य जीवोंके और उत्कृष्ट उपयोग केवलियोंके होता है। तत्र द्रव्यप्रमाणं द्वेधा संख्योपमाभेदात् ॥५॥ द्रव्यप्रमाणके संख्याप्रमाण और उपमाप्रमाण ये भी दो भेद हैं। तत्र संख्याप्रमाणं त्रिधा संख्येयासंख्येयानंतभेदात् ॥६॥ ___ संख्याप्रमाण संख्येय असंख्येय और अनंतके भेदसे तीन प्रकारका है उनमें संख्येयप्रमाणके तीन 9 भेद हैं तथा असंख्यातप्रमाण और अनंतप्रमाणके नौ नौ भेद हैं। अर्थात् परीतासंख्यात युक्तासंख्यात | और असंख्यातासंख्यात ये तीन भेद असंख्यातके हैं। इन तीनोंमें प्रत्येकके जघन्य मध्यम और उत्कृष्टके || भेदसे तीन तीन भेद हैं इसरीतिसे असंख्यातप्रमाण नौ प्रकारका हो जाता है इसीतरह अनंतके भी है। परीतानंत युक्तानंत और अनंतानंत ये तीन भेद हैं और इनमें भी प्रत्येक जघन्य मध्यम और उत्कृष्टके | IA भेदसे तीन तीन प्रकारका है इसरीतिसे अनंतके भी नौ भेद हो जाते हैं। इसप्रकार संख्यामान इकोस I प्रकारका है । संख्येयप्रमाणके जो तीन भेद कहे हैं उनके जघन्य अजघन्योत्कृष्ट और उत्कृष्ट ये नाम हैं। यहांपर इतना विशेष और समझ लेना चाहिये कि दो संख्याप्रमाण तो जघन्य संख्यात है। तीनको 18 आदि लेकर एक घाटि उत्कृष्टसंख्यात पर्यंत अजघन्योत्कृष्ट संख्यात है एवं एक घाटि जघन्य परीता. संख्यातप्रमाण उत्कृष्टसंख्यात है। उस संख्येयप्रमाणका ज्ञान इसपकार है १-निगोदिया और केवलीके सिवा वाकी संसारी जीवोंके मध्यम उपयोग होता है। ACEBSIA; BROSCLCBGASPREADMAS-PASCHEMISSAASAR PROGRABHA १६७
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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