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बाबा
। 'प्रमाणं द्विविधं लौकिकलोकोसरभेदात् ॥२॥ लौकिकं षोढा मानोन्मानाबमानगणनाप्रतिमानतत्प्रमाणभेदात् ॥३॥
अध्याय लौकिक और लोकोचरके भेदसे प्रमाण दो प्रकारका है उनमें लौकिक मानके छह भेद हैं और है। मान १ उन्मान २ अवमान ३ गणना ५ प्रतिमान ५ और तत्प्रमाण ६ ये उनके नाम हैं। उनमें लौकिक
प्रमाणका जो मान नामका भेद है वह रसमान और बीजमानके भेदसें दो प्रकारका है || पदार्थोंको मापनेवाली जो षोडेशिका आदि द्रव्य है वह रसमान कहा जाता है और कुडव आदिका ||||
नाम बीजमान है। कुष्ठा तगर आदि द्रव्य ऊंचेको उठाकर जिससे मापी जाय वह उन्मान प्रमाण है है और वह तराजू आदि कहा जाता है। रचना आदिके विभागसे भीतर प्रवेशकर क्षेत्र जिसके द्वारा मापा
जाय वह अवमान प्रमाण है और वह दण्ड आदि कहा जाता है। एक दो तीन चार पांच छह सात आदि | गणितसंबंधी प्रमाणको गणनामान कहते हैं । जिसप्रकार प्रतिमल्ल कहनेसे पहिले (एक) मल्लकी अपेक्षा
पडती है उसीप्रकार पूर्व मानकी जिस मानमें अपेक्षा पडे वह प्रतिमान कहा जाता है। चार महाअधिक ॐ तृण फल एक श्वेतसर्षपमान कहलाता है । सोलह सर्षपफल मिलकर एक धान्यमाषफल कहा जाता है। दो 18 धान्यमाषफल मिलकर एक गुंजाफल प्रमाण कहा जाता है। दो गुंजाफल मिलकर एक रूप्यमाष कहा || जाता है । सोलह रूप्यमाष मिलकर एक धरण नामका प्रमाण कहा जाता है । ढाई धरण मिलकर एक
सुवर्ण कहा जाता है और उसीका नाम कंस है। चार कंस एक पल कहा जाता है। सौ पल एक तुला | .१-पावसेर, प्राधासेर, सेर आदि समान हैं । २ जिन काष्ठादिके बने हुए मापसे धान्य तौले जाते हैं वे वीजमान कहे जाते हैं। ३ तृणफळ-यह चावल से भी हलका माप करनेका पदार्थ होता है । पोस्तके समान समझना चाहिये। ।
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