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उत्तर कुरुओंको भी कर्मभूमिपना प्राप्त था परंतु अन्यत्र शब्दके उल्लेख से देवकुरु और उत्तरकुरुसे अन्य है जो विदेह हैं वे कर्मभूमियां हैं और देवकुरु उत्तरकुरु और हैमवत आदि भोगभूमियां हैं यह यहां अर्थ स्वयंसिद्ध हो गया । इसरीतिसे विदेहक्षेत्रके भीतर रहने पर भी अन्यत्र शब्दकें बलसे देवकुरु और | उत्तरकुरु कर्मभूमि नहीं कहे जा सकते ॥ ३७॥ है। समस्त भूमियोंमें मनुष्यों की स्थिति ज्ञापन करने केलिए सूत्रकार सूत्र कहते हैं
स्थिती परावरे त्रिपाल्योमांतर्मुहूर्ते ॥ ३८॥ ' मनुष्योंकी उत्कृष्ट और जघन्य आयु तीन पल्प और अंतर्मुहूर्त प्रमाण है अर्थात उत्कृष्टस्थिति तीन पल्यकी है और जघन्यस्थिति अंतर्मुहूर्त प्रमाण है। मध्यकी स्थिति के अनेक भेद हैं । मुहूतकाप्रमाण दो घडी वा अड़तालीस ४८ मिनटका माना है इतने प्रमाणके भीतरका काल अंतमुहूर्त कहा जाता है।
यथासंख्यमभिसंबंधः॥१॥ उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्प प्रमाण है और जघन्य स्थिति अंतर्मुहर्त प्रमाण है इसप्रकार त्रिपल्योपम और अंतर्मुहूर्त शब्दका यहां यथासंख्यरूपसे संबंध.समझ लेना चाहिये । पल्पका प्रमाण आगे कहा जायगा। जिस स्थितिकी उपमा तीन पल्योंके बराबर है वह त्रिपल्योपमा स्थिति है। मुहूर्तके भीतरका जो समय हो वह अंतर्मुहूर्त कहा जाता है । वार्तिककार अब पल्यका प्रमाण कहते हैं परंतु उस पल्यका ज्ञान प्रमाणके अधीन है इसलिए सबसे पहिले प्रमाणविधिका उल्लेख किया जाता है
१ असंख्यात समयकी एक आवली कहलाती है । उससे एक समय ऊपर और मुहूसे एक समय कम मिनाहूर्त कहलाता है ।। उससे एक समय कमती अन्तर्मुहूर्त कहलाता है। ।
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