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________________ HSE SREFEBRecisiAERARLICHIKEKCICES शिनके प्राप्त हो जानेपर सम्यग्ज्ञान भाज्य है यह अर्थ निर्दोष है। किंवा-पर्वत और नारद दोनों एक है साथ रहते हैं इसलिये उनका साहचर्य संबंध है । पर्वतके ग्रहण करने पर नारदका और नारदके ग्रहण , करनेपर पर्वतका भी ग्रहण हो जाता है उसीप्रकार सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान दोनों एक साथ उत्पन्न होते हैं इसलिये उनका भी साहचर्य संबंध है सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान इन दोनोंमें किसी एकके होने पर सम्यक्चारित्र भजनीय है इसरीतिसे 'पूर्वस्य' इस एक वचन निर्देशसे सम्यग्दर्शनका भी ग्रहण होई सकता है और साहचर्य संबंधसे सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान दोनोंका भी । जब यह बात है तब 'सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानके प्राप्त हो जानेपर सम्यक्चारित्रभाज्य है' यह उक्तनियमका अर्थ होने पर अज्ञान पूर्वक श्रद्धानका प्रसंग आवेगा' यह दोष न आसकेगा। "यहां यह शंका नहीं हो सकती कि जिसतरह 'पूर्वस्य' इस एक वचन निर्देशसे सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान दोनोंका ग्रहण है उसीतरह 'उत्तरं इस एक वचनसे सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रका ग्रहण कर सम्यग्दर्शनके प्राप्त हो जाने पर सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र भाज्य है यह अर्थ होगा, और अज्ञानपूर्वक श्रद्धानका प्रसंग ज्योंका यो कायम रहेगा ? क्योंकि जिसतरह सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानका साहचर्य संबंध है उसतरह सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रका नहीं इसलिये 'उत्तर' इस एक वचन निर्देशसे उन दोनोंका ग्रहण नहीं हो सकता।" तथा सम्यग्दर्शन अथवा सम्यग्ज्ञानमें किसी एकके प्राप्त हो जाने पर सम्यक्वारित्र-यथाख्यातचारित्र भाज्य है-हो भी सकता है नहीं भी हो सकता यह चारित्रको उचर मानने पर अर्थ समझना चाहिये। है इसप्रकार श्रीतत्त्वार्थराजवार्तिकालंकारकी भाषाटीकाके प्रथमाध्यायमें दूसरा अहिक समाप्त हुआ ॥२॥ The Sonic SANKARKICKAScience
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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