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________________ मापा सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनोंको सामान्यरूपसे मोक्षमार्गपना सिद्ध हो चुका है। | अब उन्हींके विशेष स्वरूपके जाननेके लिये यह कहते हैं _ तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनं ॥२॥ अर्थ-जो पदार्थ जिस रूपसे स्थित हैं उनका उसी रूपसे श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। PII. सम्यक् यह क्या शब्द है ? इस वातका खुलासा करते हैं सम्यगिति प्रशंसाओं निपातः क्यंतो वा॥१॥ सम्यक् यह शब्द निपात और उसका अर्थ प्रशंसा है इसलिये समस्त उत्चम रूप गति जाति कुल 81 5 आयु और विज्ञान आदि अभ्युदय एवं मोक्षका प्रधान कारण होनेसे प्रशस्त दर्शन, वह सम्यग्दर्शन है। । यदि यहांपर यह कहा जाय कि 'सम्यगिष्टार्थतत्वयो' इस वचनसे सम्यक् शब्दका अर्थ इष्ट पदार्थ और तू | तत्त्व है प्रशंसा अर्थ नहीं हो सकता ? सो-ठीक नहीं। निपात रूप शब्दोंके अनेक अर्थ होते हैं। सम्यक है शब्द जब निपात माना है तब उसका इष्ट पदार्थ और तत्त्व भी अर्थ है और प्रशंसा भी है कोई दोष नहीं। अथवा तत्तरूप अर्थमें सम्यक् शब्द यहां निपातित है । तत्त्वं दर्शनं सम्यग्दर्शनं यह सम्यक् शब्द का तत्वरूप अर्थ करनेपर सम्यग्दर्शनकी व्युत्पचि है और तत्व शब्दका अर्थ 'अविपरीत अर्थात् जो पदार्थ जिस रूपसे व्यवस्थित है वह पदार्थ' यह है । अथवा सम् उपसर्गपूर्वक अञ्चु धातुसे कि प्रत्यय |६|| करनेपर सम्यक् शब्द सिद्ध हुआ है और जो पदार्थ जिस रूपसे स्थित है उसका उसी रूपसे ज्ञान होना || सम्यक शब्दका अर्थ है । दर्शन शब्दकी सिद्धि किस तरह है? ' . . . . करणादिसाधनो दर्शनशब्द उक्तः॥२॥ .. : ROCEDGEOGESGRREGARDOSGRROREA REGAAAAAABAR
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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