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अध्याच
निरूपणसे जानकर जिन्हें श्रद्धान हो वे विस्ताररुचि नामके दर्शनार्य है। वचनका विस्तार विना किये ही भाषा जिन्हें पदार्थों के ग्रहण करनेमें आनन्द मिले वे अर्थरुचि नामके दर्शनार्थ हैं। आचार आदि दादशांगोंके । १५४ द्वारा जिन्हें परिपूर्ण सम्यग्दर्शन प्राप्त हो वे अवगाढरुचि नामके दर्शनार्य हैं। तथा परमावधि ज्ञान |
|| केवलज्ञान और केवलदर्शनके विषयभूत जीव आदि पदार्थों के ज्ञानसे जिन्हें अतिशय आनंद है वे पर-IA मावगाढरुचि नामक दर्शनार्य हैं।
ऋद्धिप्राप्तार्या अष्टविधाः बुद्धिक्रियाविक्रियातपोवलौषधरसक्षेत्रभेदात् ॥३॥ . _बुद्धि क्रिया विक्रिया तप बल औषध रस और क्षेत्रके भेदसे ऋद्धिप्रातार्य आठ प्रकारके हैं। बुद्धिका । अर्थ-ज्ञान है उस ज्ञानविषयक-केवलज्ञान १ अवधिज्ञान २ मनःपर्ययज्ञान ३ बीजबुद्धि ४ कोष्ठबुद्धि ५
पदानुसारित्व ६ संभिन्न श्रोतृत्व ७ दूरास्वादसमर्थता दूरदर्शनसमर्थता ९ दूरस्पर्शन समर्थता १० || दूराघाणसमर्थता १९ दूरश्रवणसमर्थता १२ दशपूर्विव १३ चतुदर्शपूर्विव १४ अष्टांगमहानिमितज्ञता १५ | प्रज्ञाश्रवणत्व १६ प्रत्येकबुद्धता १७ और वादित्व १८ ये अठारह प्रकारकी ऋद्धियां हैं।
.. उपर्युक्त ऋद्धियोंमें केवलज्ञान अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान रूप ऋद्धियोंका सविस्तर वर्णन ऊपर कर दिया गया है। हलद्वारा अच्छीतरह जोते हुए और सुहागे द्वारा अच्छीतरह चिकने किये
हुए सारवान क्षेत्रमें काल द्रव्य आदिकी सहायताकी अपेक्षा रखनेवाला बोया हुआ एक भी बीज जिस 18 प्रकार अनेक-करोडों वीजोंके उत्पन्न करनेवाला होता है उसी प्रकार नोइंद्रियावरण श्रुतज्ञानावरण |
और वीर्यातराय कर्मके क्षयोपशमकी प्रकृष्टता रहनेपर एक. वीजपदके ग्रहण करने मात्रसे ही अनेक ९५१ | पदार्थोंका ज्ञान हो जाना बीजबुद्धि नामकी'ऋद्धि है। भंडारी द्वारा रक्खे हुए, आपसमें जुदे जुदे और हूँ
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