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________________ ? भी घटता है क्योंकि भरत और ऐरावत क्षेत्र से भी मुक्तिका विधान रहने से विदेहक्षेत्र के समान इन दोनों क्षेत्रों मनुष्यों को भी विदेह कहना अनिवार्य है इसलिए विदेह मनुष्यों के संबंध से क्षेत्रका विदेह नाम है यह कथन अयुक्त है ? सो ठीक नहीं । भरत और ऐरावत क्षेत्रमें सदा मनुष्य मुक्त नहीं होते इस लिए उनके मनुष्यों में तो कभी कभी विदेहता रहती है । परंतु विदेहक्षेत्र में सर्वकाल मुक्ति प्राप्त होती है। वहाँपर, कभी भी धर्मका उच्छेद नहीं होता- एक तीर्थंकर के बाद दूसरे तीर्थंकर के उत्पन्न होनेसे सदा मोक्षके द्वारस्वरूप धर्मकी जागृति बनी रहती है इसलिए मोक्षगामी जीवोंमें सदा विदेहता रहती है । यह भरत और ऐरावत क्षेत्रोंकी अपेक्षा विदेहक्षेत्रमें प्रकर्षता है अर्थात् भरत ऐरावत क्षेत्रों में कालका परिवर्तन होने से और कर्म भूमि के समय में भी एक तीर्थंकर के असंख्यात एवं संख्यात वर्षोंके पीछे दूसरे तीर्थकस्का जन्म होनेसे कभी कभी मोक्षमार्गका प्रकाश होता है परंतु विदेहक्षेत्र में सदैव बीस तीर्थकरोंकी सत्ता बनी ही रहती है । इसलिए वहां विदेह - मुक्तिद्वार सदैव खुला रहता है । इसीलिए इस क्षेत्रका नाम विदेह है | इसरीतिसे विदेह मनुष्यों की अपेक्षा क्षेत्रका विदेह नाम युक्तियुक्त है। यह विदेहक्षेत्र कहां पर है ? उत्तर BAURI निषधनीलयोरतराले तत्सन्निवेशः ॥ १२ ॥ निषध पर्वतके उत्तर और नील पर्वत के दक्षिणभाग में पूर्व और पश्चिम समुद्रके वीचमें विदेह क्षेत्रकी रचना है। Baker स चतुर्विधः पूर्वविदेहादिभेदात् ॥ १३ ॥ पूर्वविदेह पश्चिम विदेह उत्तरकुरु और देवकुरुके भेदसे वह विदेह क्षेत्र चार प्रकारका है । मेरुसे अध्याय ३
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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