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व०रा० भाषा
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निषेध पर्वत के दक्षिण भाग में और महाहिमवान पर्वतके उत्तर भागमें पूर्व और पश्चिम समुद्र के बीच में हरिवर्ष है ।
तन्मध्ये विकृतवान् वृचवताढ्यः ॥ १० ॥
उस हरिक्षेत्र के मध्यभागमें विकृतवान् नामका वृत्तवेताढ्य पर्वत है । उसकी समस्त रचना शब्दवान वृत्तवेताढ्य के समान समझ लेनी चाहिये । विकृतवान् वृचत्रेताढ्य के ऊपर भागमें अरुगदेवों के विहारका स्थान है | विदेहक्षेत्रको विदेदसंज्ञा इसप्रकार है
विदेहयोगाज्जनपदे विदेहव्यपदेशः ॥ ११ ॥
'विगतदेहा विदेहा:' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिनके देह न हो वे विदेह कहे जाते हैं यह अर्थ है | अथवा देहके विद्यमान रहते भी जो कर्मबंध की परंपराको सर्वथा नाश करने केलिए रंचमात्र भी | शरीरका संस्कार नहीं करते और न रंचमात्र भी ममत्वभाव रखते हैं वे भी विदेह कहे जाते हैं | विदेह क्षेत्र में मुनिगण देहके सर्वथा नाश करनेकेलिए घोर प्रयत्न करते हैं और विदेहत्व ( अशरीरत्व सिद्धत्व ) अवस्थाको प्राप्त कर लेते हैं इस रीतिले विदेह मनुष्यों के संबंध क्षेत्रका भी नाम विदेह है । शंका
जिन मनुष्यों के देहका संबंध नहीं वे विदेह कहे जाते हैं अथवा देहके विद्यमान रहते भी कर्मबंधक संतान के सर्वथा नाशार्थ जो रंचमात्र भी देहका संस्कार वा ममत्व नहीं रखते वे भी विदेह कहे. जाते हैं यह विदेह शब्दका अर्थ बतलाया गया है । परंतु यह अर्थ तो भरत और ऐरावत के मनुष्यों में १- दूसरी प्रतिमें 'वृत्तवेदाव्यः' ऐसा पाठ है। अर्थात् पर्वतका नाम वृचवेदाव्य बतलाया गया है ।
अध्याद
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