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०रा० बापा
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विजयार्ध पर्वतका विस्तार पचास योजनका है पच्चीस योजनकी ऊंचाई है और एक कोश छह योजन जमीनमें गहरा है । तथा यह एक ओर पूर्व समुद्रतक और दूसरी ओर पश्चिम समुद्र तक लंबा है।
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इस विजय पर्वत की पूर्व पश्चिम पार्श्वभुजा अर्थात् पूर्व पश्चिम मुटाई चारसौ अठासी योजन, एवं योजनके उन्नीस भागों में सोलह भाग और कुछ अधिक आधा भाग प्रमाण है । विजयार्ध पर्वतकी उत्तर प्रत्यंचा उत्तर दिशासंबंधी पार्श्वभाग में लगी हुई डोरी-जीवा दश हजार सातसौ वीस (१०७२० ) योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में कुछ कम बारह भाग है । तथा इस प्रत्यंचाका धनुःपृष्ठ दश हजार सातसौ तेतालीस (१०७४३ ) योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से कुछ अधिक पंद्रह भाग है । विजयार्ध पर्वतकी दक्षिण प्रत्यंचा नौ हजार सातसौ अडतालीस ( ९७४८) योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में बारह भाग प्रमाण तथा कुछ अधिक है । इस प्रत्यंचाका धनुःपृष्ठ नौ हजार सातसौ छयासठ योजन और एक योजनके उन्नीस भागों में कुछ अधिक एक भाग प्रमाण है ।
विजयार्घ पर्वतके दोनों पसवाडोंमें दो वनखंड हैं जो कि आधे योजन चौडे एवं विजयार्घ पर्वतके ही समान लंबे हैं तथा उन वनोंमें प्रत्येक वन आघे योजन ऊंची, पांचसौ धनुष चौडी एवं वनोंके समान ही लंबी, कहीं कहीं पर कनकमयी स्तूपिकाओं ( वुर्जों ) की धारक अत्यंत शोभनीय तोरणोंसे भूषित ऐसी पद्मवर वेदिकाओंसे व्याप्त है और वे सब ऋतुओंके फल और फूलोंके धारक वृक्षों से शोभित हैं ।
विजयार्ध पर्वत पर तमिश्रा और खंडप्रपाता नामकी दो गुफायें हैं जो कि पचास योजन उत्तर दक्षिण लंबी हैं। पूर्व पश्चिम बारह योजन चौडी हैं इनके उत्तर और दक्षिण दिशा के दोनों द्वार आठ
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