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________________ अध्याय आठ योजन ऊंच हैं, वे दोनों दरवाजे-एक एक कोश सहित छह छह योजन चौडे, एक एक कोश मोटे और आठ आठ योजनके ऊंचे वज्रमयी किवाडोंसे युक्त हैं। इन्हीं दरवाजोंसे चक्रवर्ती उचर भरतक्षेत्रके । विजयकेलिये जाता है तथा इन्हीं दारोंसे गंगा और सिंधु नदी निकल कर भरतक्षेत्रमें प्रवाहित हुई हैं। विजया पर्वतकी गुफाओंमें प्रत्येक गुफासे दो दो नदियोंका उदय हुआ है। ये नदियां जाकर ई गंगा और सिंधुमें प्रविष्ट हुई हैं। इनके नाम उन्मग्नजला और निमग्नजला हैं। ये दोनों ही नाम सार्थक हैं अर्थात् भीतरमें पडे हुए तृण आदि पदार्थको जवरन् ऊपरमें लाकर पटक देनेसे उन्मग्नजला नाम ₹ है और भीतरमें पडे हुए तृण आदि पदार्थको जवरन् तलीमें घसीट लेजानेसे निमग्नजला नाम है। इस विजया पर्वतपर जमीनसे दश योजन ऊपर दक्षिण उत्चर दोनों पसवाडोंमें पर्वतके समान है लंबी और दश योजन चौडी दो विद्याधर श्रेणियां हैं। उनमें दक्षिण श्रोणिमें रथनूपुर चक्रवाल आदि पचास विद्याघरोंके नगर हैं और उत्तर श्रेणिमें गगनवल्लभ आदि साठ नगर हैं। इन एकसौ दश , १ नगरोंमें रहनेवाले विद्याधरोंकी भरत क्षेत्रके समान असि मषि आदि छह कर्मोंसे जीविका है परंतु भरत क्षेत्रकी अपेक्षा प्रज्ञप्ति आदि विद्याओंकी उन नगरोंमें रहनेवाले विद्याधरोंमें विशेषता है। यहांसे दश ॐ योजनकी उंचाईपर दक्षिण उत्तर दोनों पसवाडोंमें दो व्यंतरीण हैं। उनका विस्तार दश योजनका है, ट्र और लंबाई पर्वतके समान है । इन श्रेणियों में सौधर्म इंद्रके सोम यम वरुण और वैश्रवण नामके लोकपाल हूँ और आभियोग्य जातिके व्यंतर देवोंके निवास स्थान हैं । यहाँसे पांच योजनकी ऊंचाईपर शिखरतल है है है। वह दश योजनं चौडा और विजयार्घ पर्वतके समान लंबा है। __इस शिखरतलकी पूर्वदिशामें एक कोस अधिक छह योजन ऊंचा और एक कोस अधिक छह GARASHLECI Piece PORRORISTIONA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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