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अध्याय
। फिर चौथीमें चार वार, तीसरीसे निकलकर तियंच वा मनुष्य होकर फिर तीसरीमें पांच वार, दूसरी
पृथिवीसे निकलकर तिर्यच वा मनुष्य होकर पुनः दूसरीमें छह वार, और पहिली पृथिवीसे निकलकर, तिथंच वा मनुष्य होकर फिर पहिलीमें सात वार तक जा सकता है अधिक नहीं।
रत्नप्रभा आदि जो भूमियोंके ऊपर नाम कहे गये हैं वे गुणकी अपेक्षा है रूढिसे नाम तो उनके घम्मा १ वंशा २ मेघा ३ अंजना ४ अरिष्टा ५ मघवी ६ और माधवी ७ ये हैं।
इसप्रकार यह अधालाकका वर्णन समाप्त हुआ।
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___ अब अधोलोकके वर्णनके बाद तिर्यग्लोक (मध्यलोक ) का वर्णन अवसरप्राप्त है इसलिये अब * उसीका वर्णन किया जाता है । तिर्यग्लोकमें क्या वर्णन करना चाहिये ? इस शंकाका समाधान है यह है कि उसमें दीप, समुद्र, उनके अधिष्ठाता, पर्वत वन क्षेत्र, उनके अंतर और परिमाण आदि बातें । है हैं उनका वर्णन करना चाहिये । यदि यहांपर यह शंका हो कि द्वीप समुद्र आदिका वर्णन तो रहने । है दो पहिले यह बताओ कि मध्यलोकका तिर्यग्लोक नाम कैसे पडा ? उसका समाधान यह है कि-उसॐ लोकमें स्वयंभूरमण पर्यंत असंख्याते दोप समुद्र तिर्यक्रूपसे अवस्थित हैं इसलिये इसका नाम तिर्यग्लोक : है। वे तिर्यक्रूपसे अवस्थित द्वीप समुद्र आदि ये हैं--
जंबूद्वीपलवणोदादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः ॥७॥ इस चित्रा पृथिवीपर शुभ शुभ नामोंके धारक जंबूद्वीपको आदि लेकर द्वीप और लवणोद
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