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अध्याय
ब०रा०
SISTERESASTE
समुद्रको आदि लेकर समुद्र इसप्रकार असंख्याते दीप और समुद्र हैं । जंबूद्वीपका जंबूद्वीप नाम कैसे पडा ? वार्तिककार इस बातका खुलासा करते हैं
प्रतिविशिष्टजंबूवृक्षासाधारणाधिकरणत्वाजंबूद्वीपः॥१॥ * यह जंबूद्वीप अपने परिवार वृक्षोंसे विभूषित और प्रतिविशिष्ट अर्थात् दूसरी जगहपर न होनेवाले ऐसे जंबूवृक्षका असाधारण स्थान है, अन्य धातकीखंड आदि द्वीप उसप्रकारके जंबूवृक्षके आधार नहीं अर्थादजंबूवृक्षका असाधारण स्थान होनेसे जंबूद्वीप यह नाम अनादि कालसे है । खुलासा इसप्रकार है
उत्तरकुरु नामक उत्कृष्ट भोगभूमिके मध्यभागमें जगती (एक गोलाकार भूमि है। उसकी लंबाई चौडाई पांचसै योजनकी है। उस लंबाई चौडाईसे कुछ अधिक तिगुनी उसकी परिधि है। प्रदेशोंकी न्यूनता हूँ होते होते (वाहिरमें हीयमान होती हुई)मध्यमें उसकी मुटाई बारह योजन और अंतमें दो कोशकी रह गई | है । वह जगती सुवर्णमयी पद्मवर वेदिकासे वेष्टित है। उसके मध्यभागमें एक पीठ है जो नानाप्रकारके ||2| रत्नोंसे देदीप्यमान है आठ योजन लंबा, चार योजन चौडा, चार योजन ऊंचा और वारह पद्मवेदिक
काओंसे वोष्टित है। उन बारह पद्मवेदिकाओं में प्रत्येकके चार चार तोरण द्वार हैं और उनपर चार चार 1|| ही सुवर्णमयी स्तूपक-बुर्ज हैं। उस पीठके ऊपर एक मणिमयी उपपीठ (दूसरा छोटा पीठ) है जो ६ कि एक योजन चौडा लंबा है और दो कोश ऊंचा है। उस उपपीठके मध्यभागमें दो योजन ऊंचे स्कंध | (पीढ़) से युक्त, छह योजन ऊंची डालियोंका धारक, मध्यमें छह योजनके चौडे परिमंडलसे शोभित, आठ योजन लंबा, अपनेसे आधे ऊंचे आठ सौ जंबूवृक्षोंसे अन्वित और अनेक देवांगनाओंसे व्याप्त सुदर्शन नामका जंबूवृक्ष है उसके संबंधसे द्वीपका नाम जंबूद्धीप अनादिकालसे है।
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