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________________ उ - | अध्याय न पहिली रत्नप्रभा भूमिके नरकोंमे उत्पन्न होनेवाले नारकी जीव सात योजन सवा तीन कोश उछलकर जमीनपर गिरते हैं। दूसरी पृथिवीके नरकोंमें उत्पन्न होनेवाले नारकी पंद्रह योजन ढाई कोश | ऊंचे उछलकर जमीनपर गिरते हैं। तीसरी पृथिवीके नरकोंमें उत्पन्न होनेवाले नारकी जीव जन्मते ही इकतीस योजन और एक कोश उछलते हैं पीछे जमानपर गिरते हैं। चौथी पृथिवीके नरकोंमें उत्पन्न | | होनेवाले नारकी जीव पाहले तो वासठ योजन और दो कोश उछलते हैं पीछे जमीनपर गिरते हैं।। पांचवी पृथिवीमें उत्पन्न होनेवाले नारकी जीव एकसौ पच्चीस योजन उछलकर जमीन गिरते हैं। छठी का पृथिवीके नरकोंमें उत्पन्न होनेवाले जीव ढाईसौ योजन उछलकर जमीनपर गिरते हैं और सातवीं || | पृथिवीके नरकोंमें उत्पन्न होनेवाले जीव पांचसौ योजन ऊपर उछलकर जमीनपर गिरते हैं। नारकियों के शरीर पारेके समान होते हैं इसलिये खंड खंड होनेपर भी फिर उनके शरीर ज्यों के त्यों हो जाते हैं। जो जीव पापोंका उपशम कर आगे तीर्थ फर होनेवाले हैं उनका दुःख देवगण छहमास पहिलेसे दूर कर देते हैं। नारकियों के नियमसे नपुंसकलिंग और हुंडक संस्थान होता है । यदि किसी तिथंच वा मनुष्य के प्रवल पापका उदय हो और वह नरकसे आया हो एवं फिर भी नरक जाना पडे तो वह सातवीं पृथिवीसे निकल कर और दुष्ट तिर्यंच वा मनुष्य होकर सातवीं में फिर एक वार ही जाता है अधिक नहीं। छठीसे निकलकर तिथंच आदि हो फिर छठीमें दो बारतक जाता है। पांच से निकलकर तिर्यच वा मनुष्य होकर फिर पांचवीमें तीन वार, चौथीसे निकलकर तिर्यंच वा मनुष्य होकर * यह विषय हरिवंशपुराणके चतुर्थ सर्गमें बडी स्पष्टतासे प्रतिपादन किया गया है। उसी के आधारसे इस प्रकरण में विशेष उल्लेख किया गया है। BASIBPSORREARRASARDARSHA । कGAB4BHBHISHISROG R E
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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