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बाषा
BRADABAD-
BIBADI
परोत्कृष्टेति पर्यायौ ॥७॥ परा और उत्कृष्ट ये दोनों पर्यायवाचक शब्द हैं इसलिए सूत्रमें जो परा शब्द है उसका यहां उत्कृष्ट PI अर्थ है । इसप्रकार रत्नप्रभा आदि नरकोंमें रहनेवाले नारकियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका वर्णन कर दिया
गया अब उन नरकोंके प्रत्येक पाथडे जो जघन्य स्थिति है उसका वर्णन किया जाता है-अर्थात् या प्रत्येक नरकमें प्रत्येक प्रस्तारमें उत्कृष्ट, जघन्य और मध्यम तीनों प्रकारको स्थिति है उसीका वर्णन किया जाता है
रत्नप्रभा नरकके पाहेले सीमंतक इंद्रकमें और उसकी आठो श्रेणियों में नारकियोंकी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षकी है । उत्कृष्ट नब्बे हजार वर्षकी है और अजघन्योत्कृष्ट मध्यम स्थिति समयोचर है । अर्थात् एक एक समय अधिक है, जितनी जघन्य है उससे उत्कृष्ट स्थितिपयंत एक एक समय। अधिक हैं वे सब मध्य स्थितिके भेद हैं। दूसरे निरय इंद्रक और उसकी आठो श्रेणियों में नारकियों की है। जघन्य आयु नव्वे हजार वर्ष, उत्कृष्टस्थिति नब्बे लाख वर्ष और अजघन्योत्कृष्ट मध्यम स्थिति समयोत्तर है। तीसरे रोरुक इंद्रकमें और उसकी आठो श्रेणियोंमें जघन्य आयु एक कोटि पूर्व उत्कृष्ट स्थिति
असंख्यात पूर्वकोटि प्रमाण और अजघन्योत्कृष्ट मध्यम स्थिति समयोचर है । चौथे भ्रांत इंद्रकमें || | और उसकी आठो श्रेणियोंमें जघन्य स्थिति असंख्यात पूर्वकोटि प्रमाण है । उत्कृष्ट सागरका दशवां
१-पहिले इंद्रकमें जो उत्कृष्ट है वह दूसरे इंद्रकमें जघन्य कही गयी है इस नियमानुसार तीसरे रोरुक इंद्रकमें जघन्य स्थिति नब्बे लाख वर्षकी ही होनी चाहिये तथा हरिवंशपुराणमें यही कहा गया है परन्तु राजवार्तिककारने वह एक कोटि पूर्वकी लिखी है। हरिवंशपुराणमें एक कोडि पूर्व नामका कोई भेद नहीं माना है।
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