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अब्बार
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अर्थात् रत्नप्रभा शर्कराप्रभा आदि भूमिरूप आधारोंको लिए हुए जो तीस लाख पच्चीस लाख आदि । विले हैं उन सबोंमें नारकियों की एक सागर तीन सागर आदिकी स्थिति है ऐसा अर्थ समझ लेना चाहिये। अथवा
साहचर्यादा ताच्छब्द्यसिद्धिः॥५॥ रत्नप्रभा आदि जितनी भूमियां हैं सब ही नरकसहचरित हैं-नरकोंसे व्याप्त हैं, इसलिए साहचर्य संबंधसे वे भूमियां ही नरक मान ली जाती हैं इसरीतिसे रत्नप्रभा आदि नरकोंमें उत्पन्न होनेवाले नारकियोंकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागर आदि प्रमाण है यह यहां संबंध समझ लेना चाहिये । एवं जब रत्नप्रभा आदि भूमियां भी नरक ही हैं तब सूत्रमें जो तेषु' शब्दका उल्लेख किया गया है वह निरर्थक नहीं, सार्थक है । यदि यहां भूमियों को ही नरक न माना जायगा तो बीचमें नरकों के पड जाने से व्यत्र
धान हो जानेके कारण रत्नप्रभा भूमिमें उत्कृष्ट स्थिति नारकियोंकी एक सागर प्रमाण है । शर्कराप्रभामें © तीन सागर प्रमाण हैं ऐसा संबंध न हो सकेगा। यदि कदाचित् यहां यह शंका उठाई जाय कि
नरकस्थितिप्रसंग इति चेन्न सत्त्वानामिति वचनात् ॥६॥ एक सागर प्रमाण आदि उत्कृष्ट स्थितिका संबंध पृथिवियों से उपलक्षित नरकोंके साथ माना जायगा तो नरकोंकी एक सागर आदि प्रमाण स्थिति मानी जायगी, उनमें रहनेवाले नारकियोंकी
नहीं ? यह भी ठीक नहीं। सूत्रमें 'सत्त्वानां' अर्थात् जीवोंकी वह स्थिति है ऐसा पाठ है इसलिए यह है जो एक सागर आदि उत्कृष्ट स्थिति बताई गई है वह नरकोंमें रहनेवाले नारकियोंकी है नरकोंकी नहीं है । इसलिए कोई दोष नहीं।
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