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________________ सकरा० तिर्यक् रूपसे भी पृथुता मानी गई है इसलिये कथंचित् विशेषण भी सार्थक है तथा उचरोचर नरका अध्याय भाषा 8 भूमियोंमें वेदनाकी अधिकता और आयु भी अधिक अधिक मानी है इसलिये “पदार्थका निमिच भी व साक्षात् पदार्थ स्वरूप मान लिया जाता है' इस नियमके अनुसार उक्त वेदना और आयुकी अधिक है ताकी कारण भी नरकभूमियां वेदना और आयुस्वरूप कही जा सकती हैं इस नियमके अनुसार अथवा उक्त वेदना और आयुका संबंध नरकभूमियों के साथ ही है इस कारणसे भी यहां पर नरकभूमिपोंकी । पृथुता ली गई है इस रातिसे वेदना और आयुके प्रकर्ष अपकर्षकी अपेक्षा भूमियोंमें भी पहिली पहि लीकी अपेक्षा नीचे नीचेकी भूमियों में महानपना सिद्ध है इसलिये 'अघोषः पृथुतराः' इस वचनका । उल्लेख अयुक्त नहीं कहा जा सकता अतः 'अघोऽधः पृथुतराः' यह अवश्य कहना चाहिये । वार्तिक- 18 || कार इसका उत्तर देते हैं यह बात सब ठीक है परंतु रत्नप्रभाका पृथुतर नाम नहीं बन सकता क्योंकि | उससे अन्य कोई नरकभूमि विस्तार वेदना वा आयुकी अपेक्षा कम हो तब तो रत्नप्रभाको पृथु तर कहा || जा सकता है किंतु सो तो है नहीं इसलिये 'पृथुतराः' शब्दके उल्लेख की कोई भी सूत्रों आवशकता नहीं । विशेष रत्नप्रभा आदि भूमियोंको धनवातवलयके आधार माना है । घनवातवलयको अंबुज्ञातवल यके आधार माना है। अंबुवातवलयको तनुवातवलयके आधार माना है । तनुवातवलयको आकाशके आधार और आकाशको अपना आप ही आधार माना है। यदि यहांपर यह शंका की जाय किआकाशको अपना आप ही आधार मानना अयुक्त है अन्यथा भूमि आदिको भी अपना आप आधार मानना पडेगा। यदि कहा जायगा कि आकाशका भी अन्य आधार मान लिया जायगा तब जिसको BARACHANDASHABDURABHA ANGREGASC A lwa
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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