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________________ REPS अध्याय ०रा० भाषा ७७७ | स्थित नहीं किंतु वे पृथिवीके सहारे ही टिके हुए हैं इस प्रकार नरकोंके आधारों का ज्ञान करानकोलये हूँ| सूत्रमें भूमि शब्दका उल्लेख किया गया है। घनांब्वादिग्रहणं तदालंबननिर्मानार्थ ॥७॥ IPI जो भूमि नरकोंका आलबन बतलाई गई हैं उनका बालंबन क्या है ? यह वात प्रगट करनेकेलिये है। सूत्रों ‘धनांबुबाताका मित्रों 'धनांबवाताकाशप्रतिष्ठाः' इसशब्दका उल्लेख है। घनमेवांब घनांब, घनांबच बातश्च आकाशं च 3 'घनांबुवातोकाशानि, तानि प्रतिष्ठा-आश्रयो यासां ताः'धनांबुवाताकाशप्रतिष्ठाः' यह धनांबुवाताकाश ६ प्रतिष्ठ शब्दका विग्रह है। मार अर्थ यह है कि-रत्नप्रभा आदि समस्त भूमियां घनोदधिवातवलयके आधार हैं। घनोदधिवातवलय धनवातवलयके आधार है। घनवातवलय तनुवातवलयके आधार है। तनुवातवलय है। आकाशके आधार है और आकाश खयं आधार और स्वयं आधेय है उप्तका कोई अन्य आधार नहीं इसलिये वह अपना आप आधार है। अर्थात्-धनका अर्थ पुष्ट-सघन है और अंबुका अर्थ जल है जिस वायु मंडलमें सघन जल-उदधि हो वह घनोदधिवातवलय है । जिस वायुमंडलमें केवल सघनता हो वह धनवातवलय है और जो वायुमं'ल मोटा न होकर सूक्ष्म हो नह तनुवातबलय है। इन तीनों वातवलयों में प्रत्येक बीस बीस हजार ---१-दातश्च वातश्च वातौ यह यहाँपर एक शेष समास मानी है एक शेप समासका यह नियम है कि समान अनेक शब्दोंमें एक ही शब्द अवशिष्ट रह जाता है अन्यका लोप हो जाता है इसलिये यहापर एक वात शब्दका लोप हो गया है इसलिये धनांबु वात से यहापर धनोदधि बात और धनवात समझना चाहिये तथा धन शब्द सामान्य है वह तनुरूर विशेषकी आकाक्षा रखता है ये बात शब्दसे यहां तनुचातका भी ग्रहण है इसमकार घमांबुवात शब्द घनोदधि वात बनवात और तनुवात इन तीन वातवबोका घोतक है। REGISAREECR-StogalleSANCEROSCRIBERSon] - -
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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