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अध्यार
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वाला है अर्थात् अमुक पुरुषका चेहरा सफेद कांतिवाला है और अमुकका चेहरा काली कांतिवाला है यहांपर काले मुखमें भी कांति व्यवहार होता है। इस रीतिसे जब तमकी भी प्रभा सिद्ध है तब जिसमें अंधकारकीसी प्रभा हो वह तमःप्रभा भूमि है यह अर्थ बाधित नहीं। शंका
भेदे रूढिशब्दानामगमकत्वमवयवार्थाभावादिति चेन्न सूत्रस्य प्रतिपादनोपायत्वात् ॥ ५॥ __ अवयवोंके अर्थोंके भेदसे शब्दोंमें भेद माना जाता है। रूढि शब्दोंमें अवयवोंका अर्थ लिया नहीं
जाता इसलिये उनका कोई भी भेदक न होनेसे रूढि शब्द आपसमें भिन्न नहीं हो सकते। रत्नप्रभा 3 आदि शब्द भी रूढि हैं। अवयवोंका यहां भी अर्थ नहीं लिया जा सकता इमलिए इनका भी आपसमें ।
भेद नहीं कहा जा सकता। सो ठीक नहीं । रत्नप्रभा आदि संज्ञाशब्दोंका भिन्न भिन्न रूपसे प्रतिपादन
करनेवाला सूत्र मौजूद है अर्थात् शब्दकी शक्तिका ग्रहण व्याकरणपे वा उममान वा कोश वा आप्तहूँ वाक्य वा व्यवहार वा वाक्य शेष अथवा प्रयोजनके सन्निधानसे होता है । यहांपर रत्नप्रभा आदिके 18 भेदका ज्ञापक सूत्र है । तथा सूत्रमें जिस रूपसे शब्दोंका गुंफन किया गया है उसका दूसरे दूसरे शब्द * वा वाक्योंका संबंध कर उनके द्वारा भिन्न भिन्न रूपमे अर्थ हो जानेसे रत्नप्रभा आदिका भेद युक्तिसिद्ध
है अर्थात् सूत्रमें जो रत्नप्रभा शब्द है वह प्रसिद्ध रत्नोंकी प्रभाके समान प्रभाका धारक होनेसे रत्नप्रभा अर्थका द्योतक है ऐसा दूसरे दूसरे शब्दोंके साथ संबंध हो जानेसे वह शेष छहों नरकोंसे भिन्न सिद्ध हो जाता है इसीतरह शर्कराप्रभा आदिमें भी समझ लेना चाहिये।
भूमिगृहणमधिकरणविशेषप्रतिपत्त्यर्थं ॥६॥ जिस तरह स्वर्गपटल पृथिवीका रंचमात्र भी सहारा न लेकर अवस्थित हैं उसतरह नरक अव
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