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तारा० भाषा
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ASALAASABALESEDIESIBCCISHORIBRAHISARLA
साहचर्यात्ताच्छब्द्यसिद्धिर्यष्टिवत् ॥३॥
अध्याय जिस तरह यष्टिसहचरित अर्थात् जिस पुरुषके हाथमें लकडी होती है उसे बुलाते समय लोग ही 'ओ लकडी' कह कर पुकारते हैं उसी प्रकार देवदत्तके पास लकडो देख कर देवदत्त यष्टि कह दिया | जाता है और यह यष्टि है ऐसा व्यवहार होने लगता है उसी प्रकार चित्र १ बज र वैडूर्य ३ लोहित ४ क्षेमसार ५ गल्व ६ गोमेद ७ प्रवाल ८ ज्योतिरस ९ अंजनमूल १० कांक ११ स्फटिक १२ चंदन १३ वर्वक १७ वकुल १५ और शिलामय १६ इन सोलह प्रकारके रत्नोंकी प्रभाके समान प्रभा होनेसे पहिली भूमिका नाम रत्नप्रभा है। शर्करा-शक्करकीसी प्रभावाली होनेसे दूसरी भूमिका नाम शर्कराप्रभा है।। वालुके समान प्रभावाली होनेसे तीसरी भूमिका नाम बालुकाप्रभा है। कीचडके समान प्रभावाली होनेसे | टू|| चौथी पृथिवीका नाम पंकप्रभा है। धूवांके समान प्रभावाली होनेसे पांचवीं भूमिका नाम धूमप्रभा है।
अंधकार के समान प्रभावाली होनेसे छठी पृथिवीका नाम तमःप्रभा है और वहल अंधकारके समान प्रभावाली होनेसे सातवीं भूमिका नाम महातमःप्रभा है । शंका
तमःप्रभेति विरुद्धमिति चेन्न स्वात्मप्रभोपपत्तेः॥४॥ तमका अर्थ अंधकार है और प्रभाका अर्थ प्रकाश है इसलिए शीत और उष्णके समान दोनों ही पदार्थ आपसमें विरोधी हैं। क्योंकि तमः प्रभा नहीं हो सकता और प्रभा तम नहीं कही जा सकती इस रीतिसे अंधकारके समान जिसकी प्रभा हो वह तमःप्रभा है यह कहना अयुक्त है । सो ठीक नहीं। प्रभाका अर्थ प्रकाश ही नहीं है किंतु द्रव्योंका निज स्वरूप भी प्रभा कहा जाता है इसीलिए मनुष्य आदिमें यह व्यवहार होता है कि अमुक मनुष्य चिकनी प्रभावाला है और अमुक मनुष्य रूखी प्रभा
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