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________________ अध्याय योजन मोटा है इसप्रकार मिलकर तीनो वातवलयोंकी मुटाई साठ हजार योजनकी है। इनमें घनोदधिवातवलयकारंगमूंगके समान है । घनवातका रंग गायके मूत्रके समान है और तनुवातका रंग अव्यक्त है-स्पष्टरूपसे नहीं कहा जा सकता। ___ रत्नप्रभाकी मुटाई एक लाख अस्सी हजार योजनकी है और उसके खरभाग पंकभाग और. अब्बलभाग ये तीन भाग हैं। उनमें चित्र वज्र वैडूर्य आदि सोलह प्रकारके रत्नोंकी प्रभासे व्याप्त खर टू पृथ्वीभाग है वह सोलह हजार योजनका मोटा है "तथा चित्ररत्नकी प्रभासे व्याप्त चित्रा, बजरलकी है प्रभासे व्याप्त वज्रा, वैडूर्यरत्नकी प्रभासे व्याप्त वैडूर्या इत्यादि भिन्न भिन्न सोलह प्रकारके रत्नोंसे व्याप्त चित्रा बज्रा आदि भिन्न भिन्न सोलह पृथिवियां हजार हजार योजन मोटी हैं ।” उसके नीचे का पंक बहुलभाग चौरासी हजार योजनका मोटा है और उसके नीचे का अप् बहुलभाग अस्सी हजार योजन BASSASSISTRIBRURALLERS का मोटा है। ___खरभागकी ऊपर नीचेकी एक एक हजार योजन मोटी दो पृथिवियों को छोडकर बीचकी चौदह हजार योजन मोटी (और एक राजू लंबी चौडी) चौदह पृथिवियोंमें किंनर किंपुरुष महोरग गंधर्व है यक्ष भूत और पिशाच ये सात प्रकारके व्यंतर देवोंके तथा नागकुमार विद्युत्कुमार सुपर्णकुमार अमिकुमार वातकुमार स्तनितकुमार उदधिकुमार दीपकुमार और दिक्कुमार इन नौ प्रकारके भवनवासी देवोंके निवास स्थान हैं। पंकबहुलभागमें असुरकुमार जातिके भवनवासी और राक्षस जातिके व्यंतरोंके १-खरमाए पंकमाए भावणदेवाण होति भवणाणि । वितरदेवाण तहा दुण्ड पि य तिरियलोए वि ॥ १४५ ॥ स्वामिकार्तिकेपानुपेक्षा पृष्ठ ८५ ७७८
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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