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________________ प्रस्तावना। श्रीमदाचार्य श्री १०८ उमास्वामी विरचित श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र वा मोतशास्त्रका परिचय देना सूरजको दोपक दिखाना है। इस ग्रन्थ की महत्ता व दुरवगमता और पूजनीयता जैसी समस्त जैनसमाजमें है वह किसीसे छिपी नहीं है इसमें दश अध्याय और ३५७ सूत्र हैं परन्तु इसके टीका ग्रन्थोंको विशालता ८४ चौरासी हजार श्लोक संख्या तकमें है। तत्वार्यराजवार्तिकालंकार श्रीमदाचार्य भट्टाकलंकदेवविरचित भाष्य है जिसमें बहुत ही सरल सस्कृत भाषाके द्वारा तत्त्वार्थका निरूपण किया गया है अन्यमतोंका खंडन जैनसिद्धान्तोंका स्थापन युक्तिपूर्वक किया गया है, सस्कृत भाषामें रचेगये इस ग्रन्थका प्रमाण सोलह हजार श्लोक प्रमाण है और इसका अध्ययन मनन करनेवाले जैन तत्वोंके भलीभांति ज्ञाता होजाते है। इस ग्रन्थका विद्वानोंमें अच्छी तरह प्रचार है इसीलिये भारतीयजैनसिद्धांतप्रकाशिनी संस्थाने अपने उद्देश्यानुसार इसका हिंदी भाषांतर प्रकट किया है। इसके प्रकाशित करनेमें अनेक विघ्नोंका सामना करना पड़ा है और समय भी लगभग आठ साल लगा है। प्रथम अध्यायसे लेकर पांचवे अध्यायके ३४ मूत्र तकका अनुबाद जटौया (आगरा) ग्रामनिवासी पं० गजाधरलालजी न्यायतीर्थ पद्मावतीपुरवालने किया है और शेष भाग-दश अध्याय तकका अनुवाद चावली (आगरा) ग्रामनिवासी एं० मक्खनलालजी न्यायालंकार पद्मावतीपुरवालने किया है। मूलग्रन्थसे अनुवादका मिलान और प्रति| लिपि (प्रफ) का संशोधन पं० श्रीलालजी काव्यतीर्थ टेहू (आगरा) ग्रामवासीने किया है। अनुवादोंमें कहांतक सफलता विद्वान् टीका कारोंको मिली है इसका विचार स्वाध्याय करनेवाले ही कर सकेंगे। __ आजकलकी पद्धतिके अनुसार ग्रन्थकर्ताका परिचय देना आवश्यक समझा जाता है परंतु शिलालेख व प्रशस्तिके अभावमें अनुमान लगाकर कुछका कुछ लिखना हम विल्कुल अनुचित समझते हैं इसलिये नवीन रीतिसे परिचय न लिखकर जो इसी श्रीतत्त्वार्थराजवार्तिकालंकार ग्रन्थमें लिखा है उसीका उल्लेख कर देते हैं। देखिये प्रथमाध्यायका अन्तिम भाग जीयाच्चिरपकलंकब्रह्मा लघुइन्चनृपतिवरतनयः । अनवरतनिखिलविद्वज्जननुतविद्यः प्रशस्तजनहृयः॥ इससे पता चलता है कि श्री अकलंकदेव लघुइन्व राजाके पुत्र थे, आपकी विद्याके सामने उस समयके समस्त विद्वान् शिर मुकाते थे
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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