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न देवाः॥५१॥ - चारों प्रकारके देव नपुंसक नहीं हैं अर्थात् देवोंमें स्त्रीवेद और पुरुषवेद दो ही वेद होते हैं नपुंसकवेद नहीं होता।
स्त्रीपुंसविषयनिरतिशयसुखानुभवनाद्देवेषु नपुंसकाभावः ॥१॥ 2 शुभगति नामकर्मके उदयसे होनेवाला जो त्रीसंबंधी और पुरुषसंबंधी अनुपम सुख है निरंतर देवर
उसका भोग करते हैं इसलिए उनके नपुंसक लिंग नहीं होता । देवोंके स्त्री और पुरुष दो ही वेद होते | ई हैं यह बात ऊपर कही जायगी ॥५१॥ हूँ यह समझ लिया कि नारकी और संमूर्छन जीवोंके नपुंसक वेद ही होता है अन्य कोई वेद नहीं होता है तथा यह भी समझ लिया कि देवोंके सिवाय स्त्री और पुरुषवेदके नपुंसक वेद नहीं होता परंतु इससे | भिन्न जो जीव हैं उनके कौन कौन वेद होते हैं यह नहीं कहा गया, सूत्रकार अब उस विषयको स्पष्ट
' शेषास्त्रिवेदाः ॥५२॥ नारकी देव और संमूर्छन जीवोंसे भिन्न गर्भज तिर्यंच और मनुष्य तीनों वेदवाले अर्थात् पुरुष है स्त्री और नपुंसक होते हैं?
जिनके पुरुष स्त्री और नपुंसक ये तीन वेद हों वे त्रिवेद कहे जाते हैं । त्रयो वेदा येषां ते 'त्रिवेदा। ॐ यह त्रिवेद पदका विग्रह है । स्त्री आदि तीनों वेदोंकी सिद्धि इसप्रकार है
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