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________________ भाषा RESPEECRETRISHTEROFERSIOBORN है पुरुष मोक्षके स्वरूपका श्रद्धान तो रखता है परंतु वह क्या चीज है नहीं जानता और न उसकी प्राप्तिहै केलिये प्रयत्न करता है उसे भी मोक्षकी प्राप्ति नहीं होती । तथा जो पुरुष मोक्षकी प्राप्तिकेलिये प्रयत्न है। तो करता है परंतु उसके स्वरूपको जानता नहीं और न श्रद्धान करता है उसे भी मोक्ष नहीं मिलती। क्योंकि विना ज्ञान और श्रद्धानके चारित्र पाला नहीं जा सकता किंतु मोक्षके स्वरूपका सच्चा श्रद्धान , ज्ञान और उसके अनुकूल चारित्रका पालन करनेसे ही मोक्षकी प्राप्ति होती है । ज्ञानमात्र रखनेसे किसी ६ भी पदार्थकी सिद्धि आजतक संसारमें नहीं देखी गई इसलिये सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चा- हूँ हूँ रित्र तीनोंको मोक्षमार्ग कहना ही युक्तियुक्त है। बादीने जो 'अनंताः सामायिकसिद्धाः' यहां सामायिक हूँ शब्दका अर्थ ज्ञानकर यह कहा था कि जैनसिद्धांतमें भी ज्ञानमात्रसे मोक्ष माना है । सो ठीक नहीं है जो आत्मा सम्यग्ज्ञानस्वरूप है और तत्त्वोंका श्रद्धान करनेवाला है उसीके सामायिक नामका सम्यक् है चारित्र भलेप्रकार पलता है विना सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शनके नहीं, इसलिये सामायिक शब्दसे सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनोंका ग्रहण है तथा समय एकत्व और अभेद ये तीनों शब्द 8 एक ही अर्थके वाचक हैं इसलिये समय शब्दका अर्थ अभेद है और समय और सामायिक दोनों एक ६ ही हैं। तथा चारित्र शब्दका अर्थ 'पाप कार्योंकी निवृत्ति होना है' इस रीतिसे अभेदरूपसे पापकार्योंकी हूँ हूँ !निवृचि होना सो सामायिक चारित्र है तब सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानके साथ ही रहनेवाला सामा- टू है यिक चारित्र सम्यक्चारित्र हो सकता है और वह मोक्षका मार्ग है यही उसका वास्तविक अर्थ है इस है + लिये सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनों ही मोक्षके मार्ग हैं केवल सम्यग्ज्ञान नहीं। यही है ५८ सिद्धांत दूसरी जगह भी प्रतिपादन किया गया है। यथा GEGURUGREALECHEESELECOLOG GANA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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