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________________ भाषा व०रा० HASIRDSSSBACHAONSAR अत्यंत दुख हुआ था वह उसका दुःख संर्वथा दूर होगया और उसे ऐसा जान पड़ने लगा मानों पहिले | कभी दुःख हुआ ही न था यहाँपर अज्ञानसे दुःख और ज्ञान हो जाने परं सुखकी प्राप्ति. दीख पड़ती है इसलिये अज्ञानसे बंध और ज्ञानसे मोक्ष होती है यही वात ठीक है किन्तु सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र तीनोंको मोक्ष मार्ग मानना मिथ्या है। उत्तर-। " __ 'नवा नांतरीयकत्वाद्रसायनवत् ॥१ वादीने जो केवल विज्ञानको मोक्षका मार्ग बतलाया है वह ठीक नहीं क्योंकि यह बात प्रायः मूर्खसे मूर्ख मनुष्य भी माननेकेलिये तयार है कि जो मनुष्य रोगको दूर करनेवाली रसायनको केवल पहिचानता है किंतु यह श्रद्धान नहीं रखता कि यह.रोग दूर कर देगी एवं विधिपूर्वक उसका सेवन भी नहीं करता उस रसायनके ज्ञानसे उसका रोग दूर नहीं होता क्योंकि श्रद्धान और सेवनविधिक विना केवल | रसायनको पहिचानने मात्रसे किसीका रोग दूर हो गया हो यह बात आजतक सुनी नहीं गई। तथा जो मनुष्य विधिपूर्वक रसायनका सेवन तो करता है परंतु वह रसायन चीज क्या है इस बातका ज्ञान नहीं रखता और न उसका उसे विश्वास है उसका भी रोग दूर नहीं होता तथा जिसको इस वातका श्रद्धान तो है कि रसायन रोग दूर करनेवाली है परंतु उसको वह पहिचानता नहीं और न विधिपूर्वक सेवन करता है उसका भी रोग दूर नहीं होता। किंतु रसायनको जो अच्छी तरह पहिचानता है। यह हा रोग दूर करनेवाली है इस वातका जिसे विश्वास है और जो विधिपूर्वक उसका सेवन करता है उसीका हूँ रोग दूर होता है । उसीप्रकार जो पुरुष गुरु आदिके उपदेशसे मोक्षको केवल पहिचानता है परंतु उसके | स्वरूप पर विश्वास नहीं रखता और न उसके पानेका प्रयत्न करता है उसे मोक्ष नहीं मिलती। तथा जो ANDROINHEMESGRORESANGALOREADAR
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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