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________________ FIR भाश EGERMELORE इसरीतिसे अज्ञानसे ही बंध होता है क्योंकि मिथ्यादर्शनको बंधका प्रधान कारण माना है तथा सामायिक मात्रसे अनंते जीवोंने मोक्षलाभ किया है क्योंकि "अनंता: सामयिकमात्रसिद्धाः" केवल सामायिकके द्वारा अनंत जीव सिद्ध हो चुके हैं। यह आगमका भी वचन है और सामायिकका अर्थ ज्ञान है। इसलिये ज्ञानसे हो मोक्ष का विधान है इसरीतिसे जब जैन सिद्धान्तमें अज्ञानसे बंध और ज्ञानसे मोक्ष । है मानी है तथा सांख्य नैयायिक आदि सिद्धांतकार भी अज्ञानसे बंध और विज्ञानसे मोक्ष स्वीकार करते है। है है तब विज्ञानको ही मोक्षका मार्ग कहना चाहिये । सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र तीनोंको मोक्ष हूँ मार्ग बतलाना निरर्थक है । और भी यह.वात है- । दृष्टांतसामर्थ्यावणिक्वप्रियैकपुत्रवत् ॥९॥ जिसतरह किसी वनियाके एक ही पुत्र था और वह उसे अत्यंत प्यारा था एक दिन उसने अपने ही पुत्रके समान किसी बालकको हाथीके पैरसे, खुदा हुआ देखा । देखते ही वह मारे दुःखके / हूँ वेहोश होगया। उसके शरीरकी समस्त चेष्टायें नष्ट हो गई और वह मरा सरीखा जान पडने लगा। वनियाकी वैसी दशा उसके चतुर मित्रोंने देख उसे होश लानेका प्रयत्न किया। उसका असली पुत्र है। उसके सामने लाकर खडा कर दिया जिस समय उसकी मूछी जगी 'यही मेरा पुत्र है' यह उसको - वास्तविक ज्ञान होगया। अपने पुत्रके समान बालकको हाथीके पैर तले कुचला हुआ देख जो उसे १--समय नाम मात्माका है, उमफा जो परिणाम-ज्ञानरूप-वही सापायिक कहलाता है। अथना समय नाम शास्त्रोंका है उनसे उत्पन्न जो ज्ञान वह सामयिक कहलाता है । इस व्युत्पत्तिसे विवक्षावश सामायिक नाम शानका भी है परन्तु जैन सिद्धांतमें है। , सामयिकमात्रसिद्धाः अनन्ताः इस वाक्यका अर्थ जुदा ही है। उक्तवाक्यमें सामायिक चारित्रका मेदरूप है । जिन्होंने सामा'. यिंकचारित्र प्राप्त करके ही यथाख्यांत चारित्र पाया हो उन्हें सापायिकमात्र सिद्ध कहते हैं। CONCERESCREE NAGEMEGESNECES . C- C
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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