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________________ Mit G - | से स्पर्शका नाश, स्पर्शके नाशसे वेदनाका नाश, वेदनाके नाशसे तृष्णाका नाश, तृष्णाके नाशसे उपा- 1, दानका नाश, उपादानके नाशसे जन्मका नाश, जन्मके नाशसे जराका नाश, जसके नाशसे मरणका नाश होता है। विद्याका अर्थ समस्त पदार्थोंको अनित्य मानना आत्मासे भिन्न, अपवित्र और दुःखस्वरूप समझना है। इस रीतिसे यह वात सिद्ध हो चुकी कि अविद्या-अज्ञानसे बंध और विद्या-ज्ञानसे || मोक्ष होती है। यह बौद्धोंका सिद्धान्त है। विशेष-जिस प्रकार जैनसिद्धान्तकारोंने अज्ञान विपरीत बोधमें कारण माना है और उससे * राग द्वेष एवं कर्म बंधकी श्रृंखला मानी है उसी प्रकार बौद्धोंने एक संस्कारसे दूसरे संस्कारकी उससे ||3 || तीसरे आदिकी उत्पत्ति मानी है बौद्ध दर्शनवाले अनित्य दुःखादिरूप भावोंमें नित्य सुखादि रूप विपरीत परिणामको अविद्या कहते हैं। उससे रागद्वेषादि रूप संस्कारों की उत्पचि मानते हैं, उनसे | पुण्यपाप रूप भावोंकी उत्पत्ति मानते हैं, उनसे कर्म तृष्णा वेदना आदिसे संसार मानते हैं। विद्या अविद्याका नाश मानकर उससे क्रमशः संसारका नाश मानते हैं इसलिये उनके यहां भी ज्ञान से ही मोक्ष होती है। ' मिथ्यादर्शनादिरिति मतं भवतां ॥८॥ तथा केवल, विज्ञानसे ही मोक्ष पदार्थको माननेवाला जैनसिद्धांत पर भी यह आक्षेप करता है | कि-" मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बंधहेतवः”। मिथ्यादर्शन अविरति प्रमाद कषाय और 3 मा योग ये बंधके कारण हैं । यह अहंत भगवानको पूजनेवाले आपलोगोंका भी सिद्धांत है । हठसे पदा-द Pाँका विपरीत श्रद्धान करना मिश्या दर्शन है । विपरीत हठ मोहसे होता है। मोहका नाम अज्ञान है - RCHAEECRECRCAMERESEASESEKHS ey*3*108*AŁOROCURA mundaman - - ५५ CERIA - M
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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