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________________ SO- A मापा सरा० AASPASPBABPSSANSABBCSAEFEN558 हतं ज्ञानं क्रियाहीनं हता चाज्ञानिनां क्रिया।धावन किलांधको दग्धः पश्यन्नपि च पंगुलः॥१॥ __ क्रिया-चारित्रके बिना ज्ञान किसी कामका नहीं, जब ज्ञान किसी कामका नहीं तब उसका सह| चारी दर्शन भी किसी कामका नहीं जिसतरह वनमें आग लगजाने पर उसमें रहनेवाला लंगडा मनुष्य नगरको जानेवाले मार्गको जानता है 'इस मार्गसे जानेपर मैं अग्निसे बच सकूँगा' इस बातका उसे है| श्रद्धान भी है परंतु चलनेरूप क्रिया नहीं कर सकता इसलिये वहीं जलकर नष्ट हो जाता है उसीप्रकार है। || ज्ञान (और दर्शन ) रहित क्रिया भी निरर्थक है जिसतरह बनमें आग लग जानेपर उसमें रहनेवाला | || अंधा जहां तहां दोडना रूप क्रिया करता है किंतु उसको नगरमें जानेवाले मार्गका ज्ञान नहीं और न || उसको यह श्रद्धान ही है कि अमुक मार्ग नगरमें पहुंचानेवाला है इसलिये वह वहीं जलकर नष्ट हो ||४|| 5 जाता है । इस रीतिसे सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनों ही मोक्षके मार्ग हैं । तथा संयोगमेवेह वदंति तज्ज्ञा न ह्येकचक्रेण रथःप्रयाति। अंधश्च पंगुश्च वनं प्रविष्टौ तौ संप्रयुक्तो नगरं प्रविष्टौं ॥२॥ एक चक्र-पहियेसे रथ नहीं चलता किंतु दोनों चक्रोंके रहते ही रथ चलता है उसीप्रकार अकेले | | सम्यग्दर्शन वा सम्यग्ज्ञान वा सम्यक्चारित्रसे मोक्ष नहीं प्राप्त होती किंतु तीनोंके मिलनेसे ही मोक्षकी प्राप्ति होती है। क्योंकि वनमें आग लगनेपर जब अन्धा और लंगडा जुदे २ रहते हैं तब तो वे वहीं || जलकर नष्ट हो जाते हैं किंतु जिस समय वे मिल जाते हैं लंगडेकी पीठपर अंधा सवार हो लेता है || १ संजोगमेव ति वदंति तगणा गवेककचक्केण रहो पयादि। अन्यो य पंगृ य वणं पविट्टा ते संपजुत्ता णयर पविट्ठा ॥१२॥ ट्रागोमट्टसारकर्मकांड। - SCIRREGAOOLEGRECALCALCAREERESPECT
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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