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________________ बरा० भाषा | सबसे पीछे क्यों किया गया ? सो ठीक नहीं । एकद्रिय दोइंद्रिय तेइंद्रिय चतुरिद्रिय जीवोंका और ||३|| पंचेंद्रियों में कोई कोई तिर्यच वा मनुष्योंका संमूर्छन जन्म माना है । यदि इस संमूर्छन जन्मका सब ॥६ जन्मोंकी अपेक्षा पहिले वर्णन किया जायगा तो इस अर्थका द्योतक एक बड़ा सूत्र करनेसे शास्त्र गौरव होगा इसलिये गर्भज औरऔपपादिकोंका पहिले कथन कर उनसे बाकी बचे जीवोंका संमूर्छन | जन्म है इस लाघवपूर्वककथन करने के लिये क्रम भंगकर सबसे पीछे संमूर्छन जन्मवाले जीवोंका उल्लेख किया गया है। सिडे विधिरवधारणार्थः॥१२॥ जो बात सिद्ध रहती है उसका फिरसे कथन करना किसी न किसी नियमका सूचक होता है। 15 जरायुज अंडज आदिका सामान्यरूपसे गर्भजन्म सिद्ध ही था फिर जो 'जरायुजांडजपोतानां गर्भः' ६) इस सूत्रसे उनका फिरसे गर्भ जन्मका विधान किया गया है वह जरायुज अंडज और पोत जीवोंका ही गर्भ जन्म होता है अन्य किसीका नहीं इस नियमका द्योतक है। यदि यहां पर यह शंका की जाय ॥ दकि-जरायुज आदिके ही गर्भजन्म होता है ऐसे नियमकी जगह उनके गर्भ ही जन्म होता है यह नियम है क्यों नहीं किया जाता ? सो ठीक नहीं । यदि जरायुज अंडज और पोत जीवोंके गर्भ ही जन्म होता है यह नियम किया जायगा तो इनसे भिन्न वाकीके जीवों के भी गर्भ जन्मका प्रसंग होगा परंतु वह १-यदि हि जरायुजादीनां गर्भ एवेत्यवधारणं स्यात् तदा जरायुजादयो गर्भनियताः स्युः, गर्भस्तु तेष्वनियत इति देवनारकेषु शेषेषु स प्रसज्येत । यदा तु जरायुजादीनामेवेत्यवधारणं तदा तेषु गर्भाभावी विभाज्यत इति युक्तो जरायुजादीनामेव गर्भः। श्लोकवार्तिक पृष्ठ ३३६ । *SSIOGALEENABALASAHEOLAMSUHAGRA GURASISAMAHARASHMAHESEARSASUR
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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