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________________ MA%AGESANGEROPLECTURGAREERABHA BI इष्ट नहीं क्योंकि शेष जीवोंके 'शेषाणां संमूर्छन' इस आगेके सूत्रसे संमूर्छन जन्म ही माना है इसलिये जरायुज अंडज और पोत जीवोंके गर्म ही जन्म होता है ऐसा नियम न मानकर उनके ही गर्भजन्म 28 होता है' यही नियम मानना वास्तविक स्वरूपकी सिद्धि में कारण है ॥३३॥ यदि जरायुज अंडज और पोत जीवोंके गर्भ जन्मका निश्चय है तब उपपाद जन्म किन जीवोंका होता है। इस शंकाका समाधान सूत्रकार करते हैं देवनारकाणामुपपादः॥३४॥ भवनवासी आदि चारो प्रकारके देव और नारकियोंका उपपाद जन्म होता है। देनादिगत्युदय एवास्य जन्मेति चेन्न शरीरनिर्वर्तकपुद्गलामावात् ॥१॥ मनुष्य हो वा तियच आयुके क्षीण हो जानेपर जिससमय वह कार्माण काययोगमें विद्यमान रहता है उससमय देव आदि गतियोंके उदयसे देव आदि संज्ञा हो जाती है इसरीतिसे उस कार्माणकाययोग रूप अवस्थाको जन्म मान लेना चाहिए, उपपाद जन्मको पृथकरूपसे माननेकी कोई आवश्यकता नहीं। सो ठीक नहीं। जहांपर देव वा तिथंच आदिके शरीरकी रचना हो वहीं देव आदिजन्मका मानना इष्ट है । कार्माणकाययोग अवस्थामें जीव अनाहारक रहता है इसलिए उससमय देव आदिके शरीरकी रचना संभव नहीं इस अवस्थाको जन्म नहीं माना जा सकता किंतु उससे भिन्न उपपाद नामका जन्म है और वह देव एवं नारकियोंके ही होता है ॥ ३४॥ ... गर्भ और उपपाद जन्मवाले जरायुज आदि जीवोंसे भिन्न अवशिष्ट जीवोंके कौनसा जन्म होता है ? इस बातका उल्लेख सूत्रकार करते हैं PRORISTRIESCENEResMARCHASAHEBG ७१
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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