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________________ BRECESSAGActric कूल गति सिद्ध है तब 'भावग्रहस्वरूप' गति जीवकी ही मानी जाय पुदुलकी नहीं इस बातके द्योत- टू नार्थ उत्तर सूत्रमें जीव शब्दका ग्रहण सार्थक है । शंका विश्रेणिगतिदर्शनान्नियमायुक्तिरिति चेन्न कालदेशनियमात् ॥६॥ ___ सदा मेरुकी प्रदक्षिणा देनेवाले चंद्र सूर्य आदि ज्योतिषी देव, मंडलिक (मंडलाकार घूमती हुई है ६ वायु) और मेरु आदिकी प्रदक्षिणा करते समय विद्याधरोंकी गति णिके प्रतिकूल दीख पडती है इसलिये जीव और पुद्गलोंकी श्रेणिके अनुकूल ही गति होती है यह नियम नहीं बन सकता ? सो, | ठीक नहीं। सर्वथा जीव और पुद्गलोंकी श्रेणिके अनुकूल ही गति होती है यह वहां पर नियम नहीं है है। किंतु अमुक काल अमुक देवशमें श्रोणिके अनुकूल गति होती है इसप्रकार काल और देशकी अपेक्षासे है। नियम है और वह इसप्रकार है___मरणके समय एक भवसे दूसरे भवमें जिससमय जीवोंका गमन होगा उससमय नियमसे उनकी है गति श्रेणिके अनुकूल ही होगी तथा जिससमय मुक्त जीवोंका ऊर्ध्वगमन होगा उससमय उनकी निय. | मसे श्रेणिके अनुकूल ही गति होगी इसप्रकार जीवोंकी अपेक्षा यह कालका नियम है तथा जिससमय | अवंलोकसे अधोलोक जाना होगा, अधोलोफसे ऊपलोक, तिर्यक्लोकसे अघोलोक वा ऊर्ध्वलोक जाना होगा वहां पर नियमसे श्रोणिके अनुकूल ही गति होगी यह जीवोंकी अपेक्षा देशका नियम है। हूँ। यहां पर जिस काल वा जिस देशका उल्लेख किया गया है उस काल और उस देशमें तो श्रेणिके अनु| कूल ही गतिका विधान है किंतु इनसे भिन्न काल और देशोंमें वह नियम नहीं। १ 'चक्रादीनां यह मी पाठ है वहां पर सुदर्शनचक्र आदि अर्थ समझ लेना चाहिये । PLANSARKARICHNSORESORSCIENTIREMPHASGAASPRESS ६८८
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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