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________________ GETC अध्याय ब०रा० M'विग्रहगतो कर्म योगः, इससूत्रसे गतिकी अनुवृचि चली ही आती परंतु गति शब्दका ग्रहण किया| MRI गया है इसलिये जान पडता है जितने भी गतिमान पदार्थ हैं सबोंकी यहां अनुश्रेणि गति इष्ट है। भाषा | समस्त द्रव्योंमें जीव और पुद्गल ये दो ही द्रव्य गतिमान हैं इसलिये जीवके समान पुद्गलकी भी। ६८७ श्रेणिके आनुपूर्वी क्रमसे गति बाधित नहीं। यदि यहांपर यह शंका की जाय कि क्रियांतरे निवृत्त्यर्थ गतिगृहणमिति चेन्नावस्थानाधसंभवात् ॥ ४॥ ___ 'अनुश्रेणि गतिः' यदि इस सूत्रमें गति शब्दका ग्रहण नहीं किया जाता तो सोना बैठना आदि। । अन्य क्रियाओंका भी ग्रहण होता इसलिये उन क्रियाओंकी निवृचिकलिये सूत्रमें गति शब्दका उल्लेख || किया गया है ? सो ठीक नहीं । जो जीव विग्रहगतिमें विद्यमान है उसके बैठना सोना उठना आदि | क्रियायें असंभव है इसलिये बेठना सोना आदि क्रियाओंकी निवृत्तिकेलिए सूत्रमें गतिशब्दका उल्लेख | मानना भ्रांति है किंतु श्रोणके आनुपूर्वी क्रमसे जीवोंके समान पुद्गलोकी भी गति होती है यही वहां गति शब्दके ग्रहणका तात्पर्य है । अथवा उत्तरसूत्रे जविग्रहणाच्च ॥५॥ 'अविग्रहा जीवस्य' इस आगेके सूत्रों जीव शब्दका उल्लेख किया गया है यदि जीव और पुद्गल दोनोंकी श्रेणिके अनुकूल गति न मानी जाती तो यहां पर जीव शब्दका ग्रहण व्यर्थ था क्योंकि यहां जीवका ही अधिकार चल रहा है इसलिये अविग्रहरूप गति जीवकी ही समझी जाती । परंतु अनुवृचिकी योग्यता रहते भी जो जीव शब्दका ग्रहण किया गया है उससे जान पडता है कि श्रेणिके अनुकूल गति जीव और पुद्गल दोनोंकी है । इसरीतिसे जब जीव और पुद्गल दोनोंकी श्रेणिके अनु SSIROHSASARG SONAGAREPRENDRSSCISGAREERCROREKABANESHABAR
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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