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________________ RRORIESCRECASTASTRISANE HERECRUICAUSER तो वैसा भेद तो वृक्षसे भी पुष्पका है इसलिए यदि आकाशका पुष्प यह व्यवहार अयुक्त कहा जायगा है तो वृक्षका पुष्प यह व्यवहार भी अयुक्त मानना पडेगा। सार यह है कि यदि पुष्प सर्वथा आकाशसे भिन्न होता तब तो 'आकाशका पुष्प' यह व्यवहार नहीं हो सकता था परंतु द्रव्यत्व वस्तुत्व प्रमेयत्व आदि धर्मोंसे पुष्पके साथ आकाशका साधर्म्य है इसलिए 'आकाशका 0 पुष्प' यह व्यवहार कभी बाधित नहीं कहा जा सकता। यदि नाम आदिजन्य भेदकी अपेक्षा आकाश का पुष्प' इस व्यवहारमें बाधा डाली जायगी तो वह भेद तो पुष्पका वृक्षके साथ भी है इसलिए वृक्षका ए पुष्प यह व्यवहार भी बाधित मानना पडेगा। इसरूपसे जब आकाशकुसुमका अस्तित्व सिद्ध है और ते उसके उत्पादक कारण भी जल पवन वृक्ष आदि मौजूद हैं तब अस्तित्व और सकारणत्व दोनोंके रहते नास्तित्व और अकारणत्व रूप साध्य साधन उसमें नहीं रह सकते इसलिए आत्माके नास्तित्व सिद्ध करने पर गगनकुसुम भी दृष्टांत नहीं हो सकता। और भी यह बात है कि___'नास्त्यात्मा अकारणत्वात् मंडूकशिखंडवत्' इस अनुमानमें जो मंडूक शिखंड दृष्टांत दिया है ६ उसके बलसे विज्ञानाद्वैतवादीको आत्माका प्रतिषेध इष्ट है परंतु वाह्य पदार्थों के आकार परिणत जो हूँ विज्ञान है उसके विषय मंडक शिखंड शशविषाण गगनकुसुम आदि भी हैं इसरूपसे जब विज्ञाना द्वैतवादीके मतको ही अपेक्षा वाह्य अर्थीकार परिणतविज्ञान के विषयभूत मंडूक शिखंड आदि पदार्थोंका अस्तित्व सिद्ध है और कारण भी उनके निश्चित हैं तव उपर्युक्त अनुमानमें कहे गये नास्तित्व और अकारणत्वरूप साध्य साधनरूप-धर्मोंका मंडूकंशिखंड आदिमें अभाव रहनेसे वे आत्माकी नाखिता प्रसिद्ध करनेमें दृष्टांत नहीं हो सकते। इसरीतिसे विज्ञानाद्वैतवादीके मतानुसार ही जब मंडूकशिखंड ।
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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