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भाषा
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आदिका दृष्टांतपना-सदोष है तब आत्माका अभाव नहीं कहा जा सकता अतः 'नास्त्यात्मा अका: रणत्वात मंडूकशिखडवत्' यह अनुमान नहीं अनुमानाभास है । शंका
उक्त अनुमान दुष्ट होनेसे न आत्माकी नास्तिताका साधक हो परंतु 'नास्त्यात्मा अप्रत्यक्षवात् शशशृंगवत्' अर्थात् आत्मा कोई पदार्थ नहीं क्योंकि वह प्रत्यक्षके अगोचर है जिसप्रकार शशाके सींग' यह अनुमान दुष्ट नहीं इसलिये यह आत्माकी नास्तिता सिद्ध करनेमें समर्थ है ? सो भी ठीक नहीं।। यहाँपर जो 'अप्रत्यक्षत्वात्' यह हेतु है वह भी असिद्ध विरुद्ध और अनेकांतिकरूप हेतुके दोषोंसे दुष्ट है और वह इसप्रकार है___पांचों ज्ञानोंमें केवलज्ञान समस्त द्रव्य और पर्यायोंको विषय करनेवाला माना है । वह शुद्ध आत्माको विषय करता है इसलिये केवलज्ञानकी अपेक्षा शुद्ध आत्माका प्रत्यक्ष है। तथा कर्म नोकर्मों के बंधके | पराधीन संसारी आत्माका ज्ञान अवधि और मनःपर्यय ज्ञानके द्वारा भी होता है इसलिये इन दो ज्ञानोंकी अपेक्षा संसारी आत्मा भी प्रत्यक्ष है । इसरीतिसे जब केवलज्ञान अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान इन तीन ज्ञानोंके प्रत्यक्ष आत्मा है तब उपर्युक्त अनुमानमें अप्रत्यक्षत्व हेतु आत्मारूप पक्षमें न रहने के कारण असिद्ध है। यदि यहांपर यह कहा जाय कि 'अप्रत्यक्षत्वात्' इस हेतुमें जो प्रत्यक्ष शब्द है उसका अर्थ इंद्रियजन्य प्रत्यक्ष है, केवलज्ञानादिजन्य प्रत्यक्ष नहीं । तथा इंद्रियोंसे आत्माका प्रत्यक्ष होता नहीं इसलिये अप्रत्यक्षत्वरूप हेतु आत्मामें रहने के कारण असिद्ध नहीं हो सकता ? सो ठीक नहीं । इंद्रियजन्य ज्ञानको परोक्ष माना गया है प्रत्यक्ष नहीं और वह इसप्रकार है
'अप्रत्यक्षा घटादयोऽग्राहकनिमित्तग्राह्यत्वात् धूमाद्यनुमिताग्निवत्' घट पट आदि पदार्थ प्रत्यक्ष
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