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________________ अब्बास भी व्याप्त है. इसलिए वहॉपर आकाशका पुष्प यह भी व्यवहार हो सकता है इसरीतिसे आकाश के पुष्प १०० भावा का अस्तित्व सिद्ध ही है। यदि यहाँपर यह शंका की जाय कि___ पुष्प पर वृक्षका उपकार है इसलिए वृक्षका पुष्प यह व्यवहार उपयुक्त है । आकाशका तो पुष्पपर कोई उपकार नहीं इसलिए आकाशका पुष्प यह व्यवहार नहीं हो सकता? सो ठीक नहीं। सबद्रव्योंको अवकाश दान देना आकाशद्रव्यका उपकार है । पुष्पको वह अवकाश दान देता है इसलिए अवकाश दानस्वरूप आकाश कृत उपकारकी अपेक्षा 'आकाशका पुष्प' यह व्यवहार भी निरापद है । तथा यह भी बात है कि प्रत्युत वृक्षकी अपेक्षा आकाश के साथ ही पुष्पका नित्य संबंध हैं क्योंकि वृक्षप्ते पुष्प इ जब नीचे गिर जाता है उससमय उससे संबंध छूट जाता है परंतु आकाश सर्वत्र व्यापक है इसलिए | आकाशसे कभी पुष्पके संबंधका विच्छेद नहीं होता इसलिए आकाशका पुष्प यही व्यवहार बलवान ४ है। "यदि यहांपर ऊपरसे यह शंका की जाय कि पुष्प वृक्षसे जन्य है इसलिए कार्य होनेसे वृक्षका पुष्प | यही व्यवहार हो सकता है । आकाशसे वह जन्य नहीं इसलिए उसका कार्य न होनेसे आकाशका पुष्प | | यह व्यवहार नहीं हो सकता ? सो भी अयुक्त है । क्योंकि प्रत्येक पदार्थको अवकाश प्रदान करनेसे आकाश सब पदार्थोंका कारण है इसलिए आकाशका पुष्प यह व्यवहार मिथ्या नहीं कहा जा सकता।" हा यदि यहाँपर यह शंका फिर उठाई जाय कि आकाशसे पुष्प भिन्न पदार्थ है इसलिए 'आकाशका पुष्प' यह व्यवहार नहीं हो सकता किंतु 'वृक्षका पुष्प' यही व्यवहार ठीक है । यह कथन भी युक्त नहीं। नाम संख्या स्वलक्षण आदिकी अपेक्षा PI सब जगह शन्दोंकी योजना मानी है । यदि नाम आदिके भेदसे पुष्पका आकाशसे भेद माना जायगा SPLORESEARCELEGRANASANA ABPROPERMISSUESCIENDUSTED
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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