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वहाँ पर कृष्णगुणका भान न होकर मीठापन प्रत्यक्षरूपसे जाना जाता है इसलिये सब गुणोंमें कृष्ण गुण प्रधान नहीं माना जा सकता । तथा और भी यह बात है कि
जहां पर परोक्ष में कृष्ण काक कहा जाता है वहां पर संशय हो जाता है क्योंकि एक पुरुष कृष्ण | काकके विशेषका जाननेवाला है वह किसी दूसरे द्वीपमें पहुंचा और वहाँ के किसी ऐसे पुरुष के सामने कृष्णकाक के स्वरूपका वर्णन किया जो पुरुष कृष्णकाकको जानता ही नहीं । वस ! कृष्णकाकका स्वरूप सुनते ही उसे यह संदेह हो जाता है कि यह मनुष्य जो 'काला काक' कह रहा है वह सब गुणों में कृष्ण गुणकी प्रधानता समझ वैसा कह रहा है अथवा कृष्णपना द्रव्यकी पर्याय है यह समझ 'काला काक' कह रहा है ? यह निश्चय है कि जहां पर संशय रहता है वहां पर पदार्थका निर्णय नहीं होता इसलिये 'काला काक' ही काक होता है यह कहना बाधित है । ऋजुसूत्रनय शुद्ध वर्तमानकालीन एक समयवर्ती पर्यायको विषय करता है उस एक समय में काक सामान्य संसारभरके सब काक काले नहीं इस | लिये काक सामान्यरूपसे कृष्णात्मक नहीं कहा जा सकता किंतु कृष्ण कृष्णात्मक और काक काकात्मक है इसलिये 'कृष्णकाक' यह ऋजुसूत्र नयका विषय नहीं हो सकता । तथा
पलाल (पूला) आदिके- दाइका अभाव यह भी ऋजुसूत्रनयका विषय है क्योंकि ऋजुसूत्रनयका विषय शुद्ध वर्तमान एक समयमात्र है और पलाल आदि चीजों के साथ अभिका संबंध होना उसका सुलगना, स्वयं जलना, जलाना कार्य असंख्याते समयोंका है इसलिये कालका भेद होजानेके कारण पलाल आदिका दाह ऋजुसूत्रनयका विषय नहीं हो सकता और भी यह बात है कि जिससमय दाह रहा है उससमय पाल नहीं किंतु उसकी भस्म पर्याय है और जिससमय पलाल अपने रूप से पलाल
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