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अध्याय
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कहा जायगा क्योंकि काक पांचों वर्गों के होते हैं। तथा पिच इड्डी रक्त आदि सात धातुओंका पिंड हूँ १०रा०
स्वरूप काकका शरीर है इनसे भिन्न कोई काक पदार्थ नहीं किंतु पिचका रंग पीला, हड्डीका रंग सफेद भाषा
और रक्तका लाल वर्ण माना है। यदि कृष्णवर्ण स्वरूप ही काक माना जायगा तो पीले आदि वर्गों के धारक पिच आदिको भी कृष्ण वर्णात्मक ही कहना पडेगा परंतु उसप्रकारका कहना प्रत्यक्ष बाधित है || | इसलिये काले वर्णका ही काक, काक है यह कहना बाधित है। यदि यहां पर यह कहा जाय कि- |
. काकका शरीर. एक अखंड द्रव्य पदार्थ है उसमें समानाधिकरण संबंधसे पिच आदि रहते हैं | | उनके पीले सफेद आदि वर्ण हैं काकसे उनका तादात्म्य संबंध नहीं इसलिये वह कृष्णात्मक ही है ? सो ६
भी ठीक नहीं । पिच हड्डी आदि काक शरीरके पर्याय है। पर्याय कभी द्रव्यसे भिन्न हो नहीं सकते है। वास्तवमें तो पर्याय ही विभिन्न शक्तियोंके धारक द्रव्य पदार्थ हैं उनसे भिन्न द्रव्य कोई चीज नहीं, इस | लिये काकके शरीरको एक विभिन्न द्रव्य मानकर पिच हड्डी आदि द्रव्योंका उसमें समानाधिकरण संबंध |
|मानना बाधित है। यदि यहांपर फिर यह कहा जाय कि| सफेद लाल पीले आदि सब तरहके काक हों परंतु सबमें प्रधान गुण कृष्ण वर्ण ही है इसलिये |
| कृष्ण गुणकी प्रधानतासे कृष्ण ही काकको काक मानना उचित है । सो ठीक नहीं। यदि कृष्णगुणकी ६ ही प्रधानता मानी जायगी तो पित्त हड़ी आदि पदार्थ पीले सफेद आदि होने पर भी वे भी प्रधानगुण ॥ हैं ही तथा और भी यह बात है कि सब गुणोंमें जब केवल कृष्णगुण ही प्रधान है मीठा खट्टा आदि
|| अनेक गुणों में कोई प्रधान नहीं तब मधु (शहद) यद्यपि कुछ कषेलापन लिये मीठा होता है परंतु अब || || उसके मीठे रस गुणका,भान न होगा, प्रधानता होनेसे केवल कृष्ण ही कृष्णगुणका भान होगा परंतु
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