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________________ वा भाषा g७३ alienathasachet anatandit SASARAIBABASALALA है उससमय दाह नहीं इसलिये ऋजुसूत्रनयके विषयभूत शुद्ध वर्तमानः एक समयमें पलालका दाह बन ही नहीं सकता इसलिये पलालका दाह ऋजुसूत्रनयका-विषय नहीं किंतु उसका अभाव ऋजुसूत्रनयका विषया है। यदि यहां पर यह कहा जाय कि 'पलालका दाह होता है। यह कहना इष्ट नहीं किंतु पलाल | ही जलता है यह कहा जाता है इसरीतिसे पलाल और दाहका समान समय होनेसे वह ऋजुसूत्रनयका | विषय हो सकता है कोई दोषा नहीं ? सो भी अयुक्त है । क्योंकि समस्त पलाल जले तब तोपलाल और | दाहका एक समय हो सकता है किंतु पलालका कुछ अंश जलता है कुछ वाकी रहता है, सबका जलना. असंख्याते समयका कार्य है इसलिये पलाल और दाइका शुद्ध वर्तमानकाल एक समयमात्र न होनेसे | वह ऋजुसूत्रनयका विषय नहीं हो सकता। यदि यहां पर भी यह शंकम की जायः किहै जो.शब्द समुदायस्वरूप समूहवाचक होते हैं उनके कुछ अवयवों में कार्य होना समुदायमें होना: | मान लिया जाता है । यद्यपि पलालके एक देशमें दाह है तब भी वहः पलाल समुदायमें मान लिया जायगा इसलिये पलाल और दाहका समान समय होनेसे पलाल दाह ऋजुसूत्रनयका विषय हो सकता है। सो भी अयुक्त है क्योंकि अवयवोंका कार्य, समुदायमें होनेवाला कार्य मान भी लिया जाय तक भी पलालका एक देश तो बिना जला ही अवस्थित है यह ऊपर बतला दिया जा चुका है एवं उस.एक | ७ देशका जलना असंख्याते समयोंका कार्य है इसलिये अवयवोंका कार्य समुदायका कार्य मानने पर भी. वह ऋजुसूत्रनयका विषय नहीं हो सकता। यदि यहांपर भी यह कहा जाय कि जो पदार्थ जलेगा वह क्रम कम कर जलेगा एक साथ संपूर्णः पदार्थका जलना नहीं हो सकता इसलिये पलालका एक देश जलने पर संपूर्ण पलालका जलना कहा जा सकता है और उसे शुद्ध वर्तः HAMROSAROVARMALAMACHCHEECHERSANSAR Matth u nhateAnemate
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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