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संबंध ही है इसलिये जिसतरह संबंध होनेपर भी संयोगकी द्रव्य आदि पदार्थों में सत्ता समवाय संबंध से मानी है इसीतरह समवायकी सत्ता भी द्रव्य आदि पदार्थों में किसी अन्य संबंध से मानना चाहिये किंतु द्रव्य आदिमें समवायकी सच्चा सिद्ध करनेवाला कोई भी संबंध है नहीं इसलिये समवाय पदार्थ सिद्ध ही नहीं हो सकता। और भी यदि यह कहा जाय कि - .
प्रदीपवदिति चेन्न तत्परिणामादनन्यत्वसिद्धेः ॥ १८ ॥
जिसप्रकार दीपक दूसरे दीपककी कुछ भी अपेक्षा न कर अपने को भी प्रकाशित करता है और घडा आदि अन्य पदार्थोंको भी प्रकाशित करता है उसीप्रकार समवाय संबंध भी अन्य किसी भी संबंधी अपेक्षा न कर द्रव्य आदि पदार्थों में अपनी सत्ताका स्वयं निश्चय कराता है और द्रव्यमें द्रव्य, वा द्रव्य गुण इत्यादिरूपसे द्रव्य आदिकी सत्ताका भी निश्चय कराता है ? सो ठीक नहीं । क्योंकि अन्य किसी भी संबंध की अपेक्षा न कर यदि समवाय संबंध द्रव्य आदि पदार्थों में स्वतः ही अपनी सत्ताका निश्चय करानेवाला कहा जायगा तो वह द्रव्य आदिका परिणाम ही सिद्ध हो गया तब जिसतरह प्रकाश परिणामका धारक दीपक अपने स्वरूप प्रकाशंसे भिन्न नहीं, यदि भिन्न माना जायगा तो दीपक पदार्थ ही सिद्ध न हो सकेगा, क्योंकि प्रकाशस्वरूप ही दपिक है प्रकाश नष्ट हो जाने पर दीपक कोई पदार्थ ही नहीं रह जाता उसीप्रकार जैनधर्म का यह सिद्धांत है कि- गुण कर्म सामान्य विशेष और समवाय ये सब द्रव्यके ही परिणाम हैं । द्रव्यसे भिन्न गुण आदि पदार्थ हैं ही नहीं किंतु वाह्य और अभ्यंतर कारणों के | द्वारा द्रव्य ही गुण कहा जाता है एवं वही कर्म सामान्य विशेष और समवाय भी कहा जाता है क्योंकि ये सब ही द्रव्यके परिणाम हैं इस रूपसे समवाय यदि द्रव्यका परिणाम ही है तब वह उससे भिन्न नहीं
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