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________________ अर्थ-नैयायिक और वैशेषिकोंने 'गुणों की सचा द्रव्यमें समवाय संबन्धसे मानी है जब समवाय भी || भाषा . एक पदार्थ है तो उसकी सत्ता द्रव्य आदिमें किस सम्बन्धसे मानी जायगी ? यदि दूसरे समवाय सम्बन्धसे 8 |मानी जायगी, यह कहोगे सो ठीक नहीं। क्योंकि दूसरा समवाय सम्बन्ध पदार्थ माना ही नहीं है | है 'स्वरूपसे समवाय एक ही पदार्थ है' ऐसा समवाय वादियों के शास्त्रोंका वचन है । यदि यह माना जायगा | कि द्रव्य आदिमें समवाय संबन्धकी सत्ता संयोग संबन्धसे मान. लेंगे सो भी ठीक नहीं। जो पदार्थ | भिन्न २ हो जानेवाले हैं उन विछुडे हुए पदार्थों का मिल जाना संयोग संबन्ध है । समवाय, द्रव्य आदि । या पदार्थों से जुदा रह नहीं सकता इसलिये संयोग संबन्धसे द्रव्य आदिमें उसकी सत्ता नहीं मानी जा सक्ती / तथा समवाय और संयोग संबन्धसे भिन्न अन्य कोई भी ऐसा संबन्ध नहीं जिससे द्रव्य आदिमें सम|| वाय संबन्धकी सचा बन सके किन्तु जिस तरह खरविषाण-गधेके सींग असिद्ध हैं उसी तरह द्रव्य || आदिमें किसी भी संबन्धसे समवाय पदार्थकी सचा सिद्ध न होनेसे समवाय पदार्थ भी असिद्ध है । इम लिये नैयायिक और वैशेषिकोंने जिस समवाय पदार्थकी कल्पना कर रक्खी है वह कोई पदार्थ ही नहीं। || यदि समवायके विषयमें यह कहा जाय कि प्राप्तित्वात्प्राप्त्यंतराभाव इति चेन्न व्यभिचारात ॥१७॥ | द्रव्य गुण आदि पदार्थ संबन्धवाले हैं इसलिये उनका कोई न कोई संबन्ध होना आवश्यक है। || समवाय पदार्थ तो खास संबंध है, संबंधवान् नहीं, इसलिये उसकी सचा सिद्ध करनेके लिये किसी संबंध | ॥ की आवश्यकता नहीं वह स्वतः सिद्ध है। सो ठीक नहीं। यदि खास सेबन्धकी सचा किसी अन्य संबंधी र से न मानी जायगी तो संयोगसंबन्धकी सचा भीसमवाय संवन्धसे न बन संकेगी क्योंकि संयोग भी ABRDS-4555EGIST-DEOSSSR SEAUCRACHECHNOLORSONAGACASEX
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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