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________________ a. HERRORISHASTRACTERIOURISPREAS न सर्वथा अभेदपक्षमें 'द्रव्यपर्याय' शब्दका द्वंद्व समास ही हो सकता इसलिये कथाचित् भेद पक्षमें 'द्रव्याणि च पर्यायाश्च द्रव्यपर्यायाः' यह इतरेतर योग द्वंद्वसमास निर्दोष है शंका-'सर्वद्रव्यपर्यायेषु यहां पर बहुवचनांत शब्दका उल्लेख किया है इसलिये बहुवचनके उल्लेखसे ही जब बहुत से द्रव्य और पर्यायोंका ग्रहण हो जायगा तब वहांपर सर्व शब्दका ग्रहण व्यर्थ ही है ? उत्तर सर्वगृहणं निरवशेषप्रतिपत्त्यर्थ ॥९॥ लोकाकाश और अलोकाकाशमें रहनेवाले भूत भविष्यत् वर्तमान तीनों कालोंके विषयभूत द्रव्यों 9 के पर्याय अनंत हैं वे समस्त केवलज्ञानके विषय हैं यह वतलानकोलिये सर्वद्रव्येयादि सूत्रमें सर्व शब्द, ६ का ग्रहण किया गया है खास तात्पर्य यहाँपर यह है कि लोकाकाश और अलोकाकाशका स्वभाव हूँ अनंत है उससे भी पदार्थ अनंतानंत हैं उन सबको स्पष्ट रूपसे केवलज्ञान जानता है यह अपरिमित माहात्म्य केवलज्ञान ही का है यह समझलेना चाहिये । यदि सूत्रमें सर्व शब्दका उल्लेख नहीं होता तो है है यह अर्थ नहीं हो सकता क्योंकि बहुवचनके अंदर यह सामर्थ्य है कि उससे बहुतसे पदार्थोंका ग्रहण हो है * सकता है किंतु यावन्मात्र पदार्थोंको केवलज्ञान विषय करता है यह अर्थ बहुवचनसे नहीं लिया जा सकत ॥२९॥ प, मतिज्ञान श्रुतज्ञान आदिके विषयका संबंध अच्छीतरह जान लिया गया परंतु यह वात अभीतक ६ नहीं जानी कि अपने अपने कारणों से उत्पन्न होनेवाले मतिज्ञान आदि ज्ञान एक आत्मामें एक साथ द कितने रह सक्ते हैं ? इस वातको सूत्रकार बतलाते हैं SANSKRISTREASTROTISTSTSISTORNSTOR
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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