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अवार
बा
माषा
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18 का उल्लेख करना व्यर्थ है। इसलिये 'द्रव्याणां पर्यायाः द्रव्यपर्यायाः ऐसा षष्ठी तत्पुरुष समासनमानकर | | द्रव्याणि च पर्यायाश्च द्रव्यपर्यायाः यह इतरेतरयोग द्वंद्व मानना ही ठीक है तथा षष्ठी तत्पुरुष समास
उचर पदार्थ ही प्रधान होता है इसलिये षष्ठी तत्पुरुष माननेस पर्यायोंको ही मुख्यता आवेगी द्रव्यकी ||५|| है। मुख्यता नहीं रहेगी इसलिये इतरेतर द्वंद ही उपयुक्त है । यदि यहांपर भी यह शंका की जाय कि- ।
जैन सिद्धांतमें पर्यायोंके समुदायको द्रव्य माना है। पर्यायोंसे भिन्न द्रव्य कोई पदार्थ नहीं इसलिये | केवलज्ञानसे जब समस्त पर्याय जान ली जायगी तब उनसे भिन्न कोई द्रव्य पदार्थ तो वाकी बचेगा || नहीं फिर पर्यायोंसे भिन्न द्रव्य शब्दका ग्रहण निरर्थक है ? सो ठीक नहीं । यदि वादी द्रव्य और | ७ पर्यायोंका भेद मानता है तब तो पर्यायसे भिन्न द्रव्य शब्दका उल्लेख कार्यकारी है और यदि उसे पर्याय / स्वरूप ही मानता है तब पर्यायोंके जाननेसे उसका भी ज्ञान हो सकता है कोई दोष नहीं । यह विषय
|| ऊपर विस्तारसे निरूपण भी कर दिया है इसलिये द्रव्य और पर्यायोंका कथंचित् भेद मानं 'द्रव्य पर्याय | 1 शब्दका इतरेतरयोग द्वंद माना है वह सार्थक है। यदि यहाँपर भी यह शंका की जाय कि पर्यायसे भिन्न
जब द्रव्य पदार्थ कोई चीज नहीं तब 'द्रव्यपर्याय' शब्दका द्वंद समास माननेपर भी द्रव्य ग्रहण व्यर्थ ही है ? सो भी ठीक नहीं । यदि सर्वथा द्रव्य और पर्यायोंका अभेद संबंध सिद्ध हो, तब तो अवश्य ।
ही द्रव्य शब्दका उल्लेख व्यर्थ है किंतु नाम संख्या और लक्षणों के भेदसे द्रव्य और पर्यायों का कथंचित || भेद माना है इसलिये कथंचित् भेद होनेसे द्रव्य शब्दका उल्लेख निरर्थक नहीं । अन्यथा संसारमें जो || आडू यह 'द्रव्य, द्रव्य व्यवहार होता है वह द्रव्यकेन कहने परन होगा इसरीतिस जब द्रव्य पर्यायोंक है। कचित् भेद है तब सर्वथा पर्यायस्वरूप द्रव्य मानकर द्रव्य शब्दका उल्लेख व्यर्थ नहीं हो सकता और
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