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एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्व्यः ॥३०॥ एक जीवके एक साथ एकसे लेकर चार पर्यंत ज्ञान रह सकते हैं अर्थात् यदि किसी जीवके एक माल ज्ञान हो तो केवलज्ञान होता है। दो ज्ञान हों तो मतिज्ञान और श्रुतज्ञान होते हैं। तीन ज्ञान हो तो II मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान वा मतिज्ञान श्रुतज्ञान और मनःपर्ययज्ञान होते हैं एवं चार हों तो मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान ये चार होते हैं। सूत्रमें जो एक शब्द है उसका वार्तिक कार अर्थ बतलाते हैं
अनेकार्थसंभवे विवक्षातःप्राथम्यवचन एकशब्दः॥१॥ ___एक शब्दके अनेक अर्थ हैं । एकं द्वौ बहवः' यहांपर एक शब्दका अर्थ एक संख्या है। एके 'आचार्या:-अन्ये आचार्याः' यहाँपर एक शब्दका अर्थ 'अन्य' माना है। 'एकाकिनस्ते विचरंति वीरावे वीर पुरुष विना किसीके सहायताके अकेले ही विहार करते हैं। यहांपर एक शब्दका अर्थ असहाय' है। 'एकमागमनं-प्रथममागमन' पहिला आना हुआ, यहांपर एक शब्दका अर्थ पहिला है । एकहतां सेना | करोमि-प्रधानहतां सेनां करोमीत्यर्थः' में प्रधान द्वारा सेनाको नष्ट कराता है,.यहांपर एक शब्दका अर्थ 'प्रधान' है । सूत्रमें जो एक शब्द कहा गया है उसका यहां प्रधान अर्थ विवक्षित है । अर्थात् मतिज्ञान आदि लेकर एक आत्मामें एक साथ चार ज्ञान विवक्षित हैं।
आदिशब्दश्चावयववचनः॥२॥ सामीप्यवचनो वा ॥३॥ । आदि शब्दके भी अनेक अर्थ होते हैं । ब्राह्मणादयश्चत्वारो वर्णाः-ब्राह्मणव्यवस्थाः, ब्राह्मणक्षत्रिय-III. विदशगाः, इत्यर्थः । अर्थात्-ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र इन चारों वाँकी ब्राह्मण वर्णके आधीना
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