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मचाय
इरा. भाषा
RAUTAR
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किसी मनुष्यने मनसे व्यक्त-खुलासारूप पदार्थका र्चितवन किया। धार्मिक वा लौकिक वचनोंको भी भिन्न भिन्न रूपसे उच्चारण किया एवं दोनों लोकके फलकी प्राप्तिकें लिये अंग और उपांगोंका पटकना सकोडना और फैलानारूप कायकी चेष्टा भी की किंतु उसके थोडे ही दिन बाद वाबहुत काल बाद उस | मनसे विचारे हुएवा वचनसे कहे हुए अथवा शरीरसे किए गये कार्यको भूल जानेके कारण मैंने मन वचन कायसे क्या किया था इस बातके विचारनेके लिए वह असमर्थ हो गया उसके उस प्रकारके मन । वचन काय द्वारा किये गये कार्यको चाह ऋजुमति मनःपर्यय ज्ञानवालेसे पूछो चाहें मत पूछो वह अपने 5 ऋजुमति मनःपर्यय ज्ञानसे स्पष्ट जान लेता है कि तूने मनसे वह पदार्थ इस रूपसे विचारा था। वचनसे इस प्रकार कहा था और शरीरसे इसप्रकार किया था । यहां पर यह शंका न करना चाहिए कि परके मनमें तिष्ठते हुये पदार्थों का ऐसा ज्ञान कैसे हो जाता है ? क्योंकि आगमका यह वचन है कि"मनसा मनः परिछिद्य परेषां संज्ञादीन जानाति इति मनसाऽऽत्मनेत्यर्थः” अर्थात् अपनी आत्मासे चारो ओरसे दूसरेका मन जान कर उसमें तिष्ठने वाले रूपी पदार्थों को मनःपर्यय ज्ञानवाला जान लेता
है, इसलिए मनःपर्ययज्ञान द्वारा परके मनमें तिष्ठनेवाले पदार्थका जान लेना आगमसे अविरोधी होनेके 9 कारण प्रामाणिक है । तथा जिस प्रकार मंच पर बैठनेवाले पुरुषों को मंच कह दिया जाता है उसी प्रकार
आगममें जो यह लिखा है कि 'मनसा मनः परिच्छिद्य' यहाँपर भी मन शन्दसे 'पर मनसे विचारे गये
मनमें तिष्ठनेवाले चेतन अचेतन सब प्रकारके पदार्थोंका ग्रहण है' अर्थात् मनको जानता है इसका है अर्थ यह है कि परके मनमें तिष्ठते हुये समस्त पदार्थोंको जानता है। तथा अपने आत्मासे आत्माको
जानकर अपना और परका चितवन जीवित मरण सुख दुःख लाभ और अलाभ आदिको भी ऋजु
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