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B/ ख्यातगुणा सर्वावधिका क्षेत्र है । काल द्रव्य और भावका प्रमाण परमावधिके समान समझ लेना / N: 8 चाहिए। वह सर्वावधि नामका अवधिज्ञान न वर्षमान है, न हीयमान है, न अनवस्थित है और न प्रति.
पाती है किंतु जब तक संयमी पुरुषकी मनुष्य पर्यायका नाश नहीं होता वहांतक सदैव रहता है अतः अवस्थित है। संयमीकी मनुष्यत्व पर्यायके पहिले छूटता नहीं-इसलिए अप्रतिपाती है। दूसरे भवमें साथ साथ जाता नहीं इसलिए अननुगामी है और एक देशसे दूसरे देशमें जाता है इसलिए देशांतरकी है अपेक्षा अनुगामी है। सर्वावधि शब्दमें सर्व शब्द समस्त अर्थका वाचक है इसलिए सर्वावधिके द्रव्य क्षेत्र काल और भावके प्रमाणमें परमावधिके द्रव्य क्षेत्र काल और भावका प्रमाण गर्भित हो जाता है इस कारण सर्वावधि के भीतर ही परमावधिक गर्भित हो जानेसे परमावधि भी देशावधि ही है इस रातिसे वास्तव में अवधिज्ञानके सर्वावधि और देशावधि ये दो ही भेद युक्तियुक्त हैं।
काल आदिकी वृद्धिका जो ऊपर उल्लेख किया गया है उनमें जिस समय काल वृद्धि होती है उस || समय द्रव्य क्षेत्र आदि चारोंकी भी नियमसे वृद्धि होती है। जब क्षेत्रवृद्धि होती है तब काल वृद्धिका है।
| कोई नियम नहीं वह होती भी है और नहीं भी होती है किंतु द्रव्य वृद्धि और भावकी वृद्धि तो नियमसे oil होती है। जिस समय द्रव्यकी वृद्धि होती है उस समय भाव वृद्धि भी नियमसे होती है परंतु क्षेत्र और
काल वृद्धिका नियम नहीं-वह होती भी है और नहीं भी होती है । तथा जिस समय भाव वृद्धि होती है उप्त समय द्रव्य वृद्धि नियमसे होती है परंतु क्षेत्र और कालकी वृद्धिका वहांपर नियम नहीं-वह होती भी है और नहीं भी होती है।
यह क्षयोपशमनिमिचक अवधिज्ञानोपयोग कहीं एक क्षेत्र रूपसे और कहीं अधिक क्षेत्र रूपसे
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