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________________ S LAMIREMECESSISGARDESHPERHGRESO आचारांगमें चारित्रका विधान है आठ प्रकारकी शुद्धि ईर्या भाषा आदि पांच समिति मनोगुप्ति है आदि तीन गुप्ति इसप्रकार मुनियोंके आचारका वर्णन है इसकी पद संख्या अठारह हजार है। सूत्रकृतांग में ज्ञानका विनय प्रज्ञापना कल्प्य अकल्प्य छेदोपस्थापना व्यवहार धर्म क्रियाओंका निरूपण है। इसमें स्वसमय और पर समयका भी निरूपण है और इसकी पदसंख्या छत्तीस हजार है। स्थानांगमें अनेक धर्मोंके ६ आश्रय जो पदार्थ हैं उनका वर्णन है । अर्थात् संपूर्ण द्रव्योंके एकसे लेकर जितने विकल्प हो सकते हैं है उन विकल्पोंका वर्णन है जैसे-सामान्यकी अपेक्षा जीव द्रव्यका एकही भेद है। संसारी और मुक्तकी हूँ हूँ अपेक्षा दो भेद हैं । उत्पाद व्यय और प्रौव्यकी अपेक्षा तीन भेद हैं। चार गतियोंकी अपेक्षा चार भेद है है हैं इत्यादि । इसीतरह पुद्गल आदि द्रव्योंके भी समझलेना चाहिये । अथवा स्थानांगमें एकको आदि है है लेकर दश पर्यंत गणितका वर्णन है जिसतरह एक केवलज्ञान एक मोक्ष एक आकाश एक धर्मद्रव्य एक अधर्म द्रव्य इत्यादि । दो दर्शन दो ज्ञान दो राग द्वेष इत्यादि । तीन सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक् चरित्र स्वरूप रत्न, माया मिथ्या निदान तीन शल्य, जन्म जरा मरण तीन दोष इत्यादि । चार गति, 8 चार अनंत चतुष्टय चार कषाय इत्यादि । पांच महाबत पांच अस्तिकाय पांच ज्ञान इत्यादि। पद द्रव्य, षट् लेश्या, षट् आवश्यक इत्यादि । सात तत्त्व सात व्यसन सात नरक इत्यादि। आठ कर्म आठ गुण आठ ऋद्धियां इत्यादि। नौ पदार्थ नौ नय नौ प्रकारका शील इत्यादि। दश धर्म दश परिग्रह दश दिशा इत्यादि । इसकी पद संख्या वियालिस हजार है। समवाय अंगमें समस्त द्रव्योंमें द्रव्य क्षेत्र काल भावकी अपेक्षा समवाय-समानता वतलाई गई है। अर्थात् किसी कोटी अथवा प्रमाणसे अनेक तत्त्वों १ भाषा हरिवंशपुराण पृष्ठ १४४ । राजवार्तिककारके कथनानुसार दोनों अर्थ अविरुद्ध हैं। EKSIKARKESTAGRATKAR
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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