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________________ अध्या वरा० भाषा का एकरूप में संग्रह किया जा सके उसे समवाय समझना चाहिये जिसतरह धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य लोका६ काश और एक जीव इन सबके प्रदेश बराबर असंख्यात लोक प्रमाण हैं इसलिये प्रदेशोंके बराबर हू होने से यह द्रव्यकी अपेक्षा समानता है अर्थात् एक रूप है। जंबूद्वीप सर्वार्थसिद्धि विमान अप्रतिष्ठान हूँ ३५५ है नरक और नंदीश्वर द्वीपकी एक वावडी इनसबके क्षेत्रकी चौडाई एक एक लाख योजनकी है इसलिये |क्षेत्रके बराबर होनेसे यह क्षेत्रको अपेक्षा समानता है एकरूप है। अथवा मुक्तिशिला पहले नरकका | पहिला सीमंतक पाथडा, पहिले स्वर्गका ऋजुविमान और नरलोक (ढाई दीप) इन सबका क्षेत्र पैंतालीस पैंतालीस लाख योजन प्रमाण है इसलिये यह भी क्षेत्रकी अपेक्षा समानता है। जितना दश कोडाकोडी सागर प्रमाण काल उत्सर्पिणीका है उतना ही अवसर्पिणीका है यह कालकी अपेक्षा समानता है । क्षायिक 81 ६) सम्यक्त्वकेवलज्ञान केवल दर्शन और यथाख्यातचारित्र इन चारोंका स्वरूप अनंत २ माना है यह भाव 15 की अपेक्षा समानता है। इसमें पदोंका प्रमाण एक लाख चौसठ हजार है। व्याख्याप्रज्ञप्ति अंगमें जीव है या हूँ नहीं ? वक्तव्य है कि अवक्तव्य है ? नित्य है कि अनित्य है ? एक है कि अनेक है ? नित्य है कि अनित्य हा है ? इत्यादि साठि हजार प्रश्नों का वर्णन है। इसमें पद संख्या दो लाख अट्ठाईस हजार है । ज्ञातृधर्म| कथा अंगमें आख्यान-तीर्थंकरोंकी दिव्यध्वनि और उपाख्यान गणधर आदिकी उपकथाओंका वर्णन | है अर्थात् जीवादि पदार्थों का स्वभाव तीर्थकरोंका माहात्म्य, तीर्थकरोंकी दिव्यध्वनिका समय और | माहात्म्य, उत्तम क्षमा आदि दश धर्म, सम्यग्दर्शन आदि रत्नत्रय धर्मका स्वरूप बतलाया है एवं गणघर इंद्र चक्रवर्ति आदिकी उपकथाओंका वर्णन है। इसकी पद संख्या पांच लाख छप्पन हजार है। १ सातवें नरकका पाथहा। SASHUGRECOREGAALASARALASANSAANSAR RECACAAAAAAAACHCAREERIES
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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