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________________ 6 बध्याय MALARISRRIALCIAGNOSAURLECCASREPRENER - संख्यावैपुल्यवाचिनो बहुशब्दस्य ग्रहणमविशेषात् ॥ १॥ .. बहशब्दके दो अर्थ हैं एक संख्या जिसतरह एक दो और बहुत यहां पर बहु शब्दसे तीन आदि संख्या ली जाती है। दूसरा अर्थ बहुत है जिसतरह "बहुरोदनः' 'वहुसूप बहुतसा 'भात, बहुतसी ६ दाल । सूत्रमें जो बहु शब्दका पाठ रक्खा है वह किसीप्रकारका भेद न कर दोनोंहीअर्थका वाचक लिया । 8 गया है। शंका- . बह्ववगृहायभावः प्रत्यर्थवशवर्तित्वादिति चेन्न सर्वदैकप्रत्ययप्रसंगात् ॥२॥ बौद्ध लोग ज्ञानको प्रत्यर्थक्शवति अर्थात् एक समयमें एकही पदार्थको विषय करनेवाला मानते है हैं इसलिये उनकी ओरसे यह कहना है कि जब ज्ञान एक समयमें एकही पदार्थको ग्रहण करता है * अनेक पदार्थों को नहीं तब एकसाथ बहुतसे पदार्थों के अवग्रह ईहा आदि ज्ञान होते हैं यह नहीं कहा जा १ सकता। परंतु उनका कहना ठीक नहीं । यदि ऐसा माना जायगा तो सदा एकही पदार्थको प्रतीति ५ होगी फिर किसी विशाल वृक्षरहित चट्टान प्रदेशमें वा वृक्षोंसे घने प्रदेशमें एक ही पुरुषको देखनेवाले 8 ६ पुरुषको जो यह ज्ञान होता है कि अनेक पुरुष नहीं हैं यह ज्ञान नहीं हो सकता क्योंकि अनेक पदार्थों हूँ को ग्रहण करनेवाला विज्ञान माना नहीं गया और अनेक नहीं इस ज्ञानमें अनेक पदार्थों का अवलंबन ९ है। यदि यहॉपर यह कहा जाय कि उस ज्ञानमें अनेक नह। ऐसी प्रतीति नहीं होती तब 'अनेक हैं' यह प्रतीति कहनी होगी फिर एक पदार्थको अनेक समझना मिथ्याज्ञान कहा जाता है इसलिये उस प्रतीतिको मिथ्या प्रतीति कहना पडेगा। तथा अनेक घरोंके समूह रूप नगरमें 'यह नगर है' ऐसी एक ही प्रकारकी सदा प्रतीति होती है। अनेक वृक्षोंके समुदायस्वरूप वनमें वा अनेक ग्रामोंके समूहस्वरूप PAREKACTERNECESSISTANCESCIEND AUGU
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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