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आदि मतिज्ञानके तीनमाल नहीं कहा जा सकारण नहीं हो सका परपरासे पड जाती
GARCISEARCARRIAssert
अध्याय
रीतिसे जब ईहा आदि ज्ञानमें साक्षात् इंद्रियां कारण न भी हों तो भी परंपरासे पड जाती हैं और श्रुत-हूँ T०० हूँ ज्ञानमें साक्षात् और परंपरा किसी रूपसे इंद्रियां कारण नहीं हो सकतीं तब ईहादि ज्ञान मतिज्ञान कहे
जा सकते हैं श्रुतज्ञान मतिज्ञान नहीं कहा जा सकता। शंका- .
___ मतिज्ञानके तीनसै छचीस भेद माने हैं उनमें चक्षुरिंद्रियजन्य ईहा आदि श्रोत्रहद्रियजन्य ईहा , आदि इत्यादि भेद कहे गये हैं। यदि ईहा आदिकी उत्पत्ति केवल मनसे ही मानी जायगी इंद्रियोंको - कारण नहीं कहा जायगा तो उक्त भेद न हो सकेंगे फिर मतिज्ञानके ३३६ तीनसौछचीस भेद हीन बन 5 सकेंगे? सो ठीक नहीं । इंद्रियाकार परिणत आत्मा भावेंद्रिय कहा जाता है। उसकी विषयाकार परिहै णति ईहा आदि कहे जाते हैं इस रीतिसे जब भावद्रियस्वरूप आत्माके परिणाम ईहादिक हैं तब चक्षु
इंद्रियजन्य ईहा आदि जो भेद माने हैं वे अखंडरूपसे सिद्ध हो जाते हैं । इसरूपसे ईहा आदिमें इंद्रिय- | कारणता और मत्तिज्ञानपना माननेमें कोई आपचि नहीं ॥१५॥
ज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमसे होनेवाले मतिज्ञानके भेद अवग्रह आदिका वर्णन कर दिया गया | अब वे अवग्रह आदि किन किन पदार्थों के होते हैं ? यह सूत्रकार बतलाते हैं
बहुबहुविधक्षिप्रानिःसृतानुक्तधुवाणां सेतराणां ॥१६॥ बहु (बहुतसे) बहुविध (बहुत प्रकार ) क्षिप्र (जल्दी) अनिसृत (नहीं निकला हुआ) अनुक्त (नहीं कहा गया) ध्रुव (निश्चल) एवं इनके उलटे एक, एक प्रकार, धीरे, निकला हुआ, कहाहुआ और चल विचल इसप्रकार इन बारह प्रकारके पदार्थों के अवग्रह आदि होते हैं।
१ मतिज्ञान के प्रकरणके समाप्त हो जानेपर लिखे जायगे ।
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